ऑटो वर्कशॉप का अनुभव काम आया
महेश ने बुजुर्गों की कही बात कि ‘जीवन में सीखा कोई काम बेजा नहीं जाता’ को सही साबित करते हुए अपने पुराने अनुभव का प्रयोग कर यह सफलता हासिल की। उन्होंने महाराष्ट्र में करीब सात वर्ष बजाज ऑटो के एक वर्कशॉप में काम किया, लेकिन दसवीं पास नहीं होने के कारण वहां नौकरी स्थायी नहीं हुई और घर वापस आ गया, तो रोजगार की समस्या सामने थी। खेती के अलावा पेट भरने के लिए कोई रोजगार नहीं था। उस पर घर की हालत ऐसी कि ट्रैक्टर खरीदना तो दूर, बैल भी नहीं खरीद सकते थे। उन्होंने अपने दोस्त के गैराज से पुराने बजाज चेतक स्कूटर का स्क्रैप करीब 4500 रुपए में खरीदा और उसे विभिन्न तरीके आजमाकर छोटे ट्रैक्टर का रूप दे दिया, जिसमें ट्रैक्टर का छोटा हल लगा दिया।नौ हजार रुपए खर्चा आया
महेश को इस पावर टिलर को बनाने में करीब 9000 रुपए खर्च करने पड़े। यह यंत्र जो केवल ढाई लीटर पेट्रोल में पांच कट्ठा जमीन यानी लगातार पांच घंटे जुताई करता है। ममेश की यह मशीन पूरे गांव के लिए प्रेरणादायी बन गई है। जाहिर है, यह पावर टिलर ट्रैक्टर की तुलना में सस्ता और चलाने में अधिक सरल है।ऐसे बनाया
इसे बनाने की विधि के विषय में महेश कहते हैं, ‘इसके लिए सबसे पहले 20 बाई 41 इंच का चेसिस बनाया। अब इंजन और हैंडल की जरूरत पूरी करने के लिए स्कूटर का इंजन लगा दिया। गेयर बक्स, हैंडल और दोनों चक्कों को निकाल कर बनाए गए उस चेसिस में फिट कर दिया।’ महेश की अगले साल तक पावर टिलर के अधिक बड़े और शक्तिशाली संस्करण को लाने की योजना है।