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घोषणा पत्र ऐसी स्याही से बनते हैं, जो चुनाव के बाद स्वत: मिट जाती है

locationजयपुरPublished: Nov 10, 2018 04:45:04 pm

Submitted by:

Aryan Sharma

ग्राउंड जीरो से जन-मन : गौरव टावर

Jaipur

ग्राउंड जीरो से जन-मन

आर्यन शर्मा
जीटी यानी गौरव टावर। यह वह जगह है जहां हर आयु-वर्ग के लोग शॉपिंग, फन एक्टिविटीज और हैंगआउट के लिए आना पसंद करते हैं। भले ही आज जयपुर की सीमा दूर-दूर तक फैल गई है, नए-नए मॉल खुल गए हैं, लेकिन जीटी की शोहरत में कमी नहीं आई है। जयपुर ही नहीं, दूसरे शहरों से आने वाले लोगों के लिए भी यह ऐसी जगह है, जहां जाना उनकी प्राथमिकता में रहता है। शाम होते-होते यहां चहल-पहल इतनी बढ़ जाती है जैसे कोई फेस्टिवल हो। ऐसे में सोचा कि क्यों न शहर के युवाओं की पसंदीदा जगहों में से एक पर चुनावी माहौल का जायजा लिया जाए।
वहां पहुंचा तो देखा कि सब अपनों के साथ मौज-मस्ती में मशगूल थे। तभी एक फास्ट फूड की स्टॉल पर बर्गर और फ्लेवर्ड ड्रिंक का लुत्फ ले रहे दो युवाओं को चुनाव पर चर्चा करते सुना। वे देश के वर्तमान हालात पर क्रोधित थे। कह रहे थे, सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा पर इतना खर्चा कर दिया, जबकि इस राशि को किसानों की कर्जमाफी में काम लेते तो किसान आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होते। तो हालात कैसे सुधर सकते हैं, मेरे इस सवाल पर नेचुरोपैथी और योगा साइंस में इंटर्नशिप कर रहे मधुसूदन द्विवेदी ने तपाक से जवाब दिया, हालात सुधारने में नेता कोई योगदान नहीं दे सकते। परिस्थितियां तभी बदलेंगी, जब जनता खुद आगे बढ़कर इनके बारे में सोचेगी। लोगों को वोट करते समय प्रत्याशी की काबिलियत देखें। खोखले दावे करने वाले तो बहुत हैं लेकिन हकीकत में काम करने वाले कम हैं। अब युवा नेताओं से ही उम्मीद बची है, क्योंकि वे सही दिशा और सोच के साथ काम करेंगे तो राजनीति में गेमचेंजर बन सकते हैं। वैसे भी हर कोई कहता है कि युवा देश का भविष्य हैं, ऐसे में युवाओं को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। भले ही आपराधिक छवि के लोगों की बहुतायत ने राजनीति को मलिन कर दिया लेकिन स्वच्छ छवि के लोगों को राजनीति में आना चाहिए।
फिर एक फुटवियर शॉप में दाखिल हुआ। वहां खरीदारी कर रही लड़कियों से चुनाव की चर्चा छेड़ी तो फैशन डिजाइनर मोनिका शर्मा बोल पड़ीं, चुनाव में वोट तो हम पूरी उम्मीद के साथ देते हैं लेकिन उसके बाद कोई परिणाम नहीं दिखता। आज महिला सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। दो साल की बच्ची हो या युवती, कोई भी सुरक्षित नहीं है। आए दिन लड़कियों से छेडख़ानी, बलात्कार जैसी घटनाएं होती हैं। इन दिनों तो ‘मीटू’ अभियान के जरिए भी महिलाएं कार्यस्थल पर अपने साथ हुए गलत व्यवहार की पीड़ा साझा कर रही हैं। अब आप ही सोच सकते हैं कि देश कहां जा रहा है। राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर आधी आबादी को ऐसा माहौल देना होगा, जहां वे बेखौफ रह सकें। इस बीच लॉ स्टूडेंट अनुष्का माहेश्वरी कहने लगीं, शिक्षित युवाओं और महिलाओं को राजनीति में आना चाहिए। मेरे खयाल से युवा ही सक्रिय रहकर रोजगारपरक शिक्षा, रोजगार, खेलकूद सुविधाएं, पानी, साफ-सफाई सरीखे मुद्दों पर बेहतर काम सकते हैं।
यहां से शॉप के दूसरी तरफ खड़े एक समूह के पास पहुंचा। वे कहने लगे, बेरोजगारी, पानी, सीवरेज, महंगाई जैसी समस्याएं तो मानो लोगों की नियति बन चुकी हैं। इनका समाधान कोई नहीं निकाल पा रहा। मालवीयनगर में रहने वाले पवन जैन बोले, अक्सर बहुत से क्षेत्रों में बाहरी नेता जीतकर आते हैं। वे इलाके की समस्याओं से वाकिफ नहीं होते। विधायक स्थानीय हो तो हालात में सुधार की थोड़ी उम्मीद रहती है। इसी दौरान राकेश सैनी और करण वर्मा एक स्वर में कहने लगे, हर बार घोषणा पत्र बनते हैं। इनमें बेरोजगारी, अपराध, भ्रष्टाचार आदि से निजात दिलाने का भरोसा दिया जाता है लेकिन चुनाव जीतने के बाद स्थिति ढाक के तीन पात ही रहती है। लगता है घोषणा पत्र उस स्याही से तैयार किए जाते हैं, जो चुनाव खत्म होते ही अपने आप मिट जाती है। लिहाजा नेता अपने वादे भूल जाते हैं।
विद्याधर नगर निवासी मनीष गोयल नाराजगी भरे लहजे में बताने लगे, सरकार समस्याओं का समाधान करने के लिए हेल्पलाइन नंबर तो दे देती है मगर कभी उसकी मॉनिटरिंग नहीं करती। बहुत से हेल्पलाइन नंबर ऐसे हैं, जो जनता की कोई हेल्प नहीं कर रहे हैं। हमारे इलाके में सड़क के हाल खस्ताहाल हैं। कई मर्तबा संबंधित जिम्मेदारों को शिकायत की, लेकिन सब कान में रूई डालकर बैठे हैं।
भले ही देश, राज्य और शहर में समस्याओं का अंबार लगा हो, लेकिन युवा अब भी सकारात्मक सोच रखते हैं। उन्हें लगता है कि धीरे-धीरे ही सही राजनीतिक पार्टियां और नेता जनता के हित को समझेंगे।
युवाओं के प्रमुख मुद्दे : रोजगार, महिला सुरक्षा, शिक्षा पद्धति में हो सुधार, खेलकूद गतिविधियों को मिले बढ़ावा, स्वास्थ्य सुविधाएं हो बेहतर, पर्यावरण का संरक्षण हो।

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