जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा नेटबंदी, राजस्थान दूसरे नंबर पर
भारत में जिस तरह से लोग बैंकिंग, ई-कॉमर्स से लेकर होटल, ट्रेन, बस, हवाई जहाज तक की बुकिंग और रोजमर्रा के लेन-देन ऑनलाइन कर रहे हैं, उसे देखते हुए इंटरनेट सेवा बंद कर देना असुविधा का बड़ा कारण बन गया है। क्योंकि जब भी किसी क्षेत्र, शहर या राज्य में ‘इंटरनेट कर्फ्यू’ लगता है तो सबसे ज्यादा खामियाजा आमजन को ही भुगतना पड़ता है। हाल ही में राजस्थान में जयपुर के शास्त्री नगर इलाके में सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार के बाद अफवाहें फैलने और हिंसा को रोकने के लिए प्रशासन ने 13 पुलिस थाना इलाकों में चार दिन तक मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद रखी। वहीं जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ के मद्देनजर निवारक उपाय के रूप में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया था। यों तो अलग-अलग कारणों से इंटरनेट सेवाएं देशभर के ज्यादातर राज्यों में बंद की जाती रही हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर में अब तक सबसे ज्यादा 170 बार इंटरनेट सेवाएं बंद की गई हैं। वहीं 59 बार इंटरनेट शटडाउन के साथ राजस्थान दूसरे नंबर पर है। इस साल जून माह में 11 ऐसे मौके आए, जब इंटरनेट शटडाउन किया गया। इनमें से जम्मू-कश्मीर में सात बार इंटरनेट बंद किया गया। देश के 2019 में अब तक के इंटरनेट शटडाउन में से करीब 75 फीसदी जम्मू-कश्मीर में देखे गए। जबकि पिछले साल कुल 134 इंटरनेट शटडाउन में से 65 जम्मू-कश्मीर में हुए।
देश में इंटरनेट शटडाउन
वर्ष कितनी बार
2012 3
2013 5
2014 6
2015 14
2016 31
2017 79
2018 134
2019(अब तक) 61 ‘इंटरनेट कर्फ्यू’ में जम्मू-कश्मीर शीर्ष पर
राज्य कितनी बार
जम्मू-कश्मीर 170
राजस्थान 59
उत्तर प्रदेश 15
हरियाणा 12
गुजरात 11
बिहार 10
महाराष्ट्र 9
प. बंगाल 7
मणिपुर 5
मध्य प्रदेश/पंजाब/मेघालय/त्रिपुरा 4
देश कितनी दफा
भारत 154
पाकिस्तान 19
इराक 8
सीरिया 8
तुर्की 7
कांगो 5
इथियोपिया 5
ईरान 4
चाड 3
मिस्र 3
(जनवरी 2016 से मई 2018 तक)
भारत में इंटरनेट यूजर : 56 करोड़ (मार्च 2019 तक)
सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर्स के मामले में चीन (82.9 करोड़) के बाद दूसरे नंबर पर है भारत
फ्रीडम ऑन द नेट 2018 रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट फ्रीडम में भारत का स्कोर 43 है। यह आंकड़ा दिखाता है कि कैसे सरकारी नियंत्रण की वजह से इंटरनेट की स्वतंत्रता पर असर पड़ा है। यानी भारत ‘आंशिक मुक्त’ श्रेणी में है। स्कोर जितना ज्यादा होगा, स्वतंत्रता उतनी कम होगी। जैसे कि 0 स्कोर का मतलब है पूरी स्वतंत्रता, वहीं 100 का मतलब है कोई स्वतंत्रता नहीं।
इंटरनेट फ्रीडम इंडेक्स 2018
देश स्कोर
एस्टोनिया 6
भारत 43
चीन 88
इंटरनेट शटडाउन के कारण देश को भारी आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के मुताबिक देश में 2012 से 2017 के बीच छह साल में कुल 16,315 घंटे तक इंटरनेट सेवाएं बंद रहीं, जिसकी वजह से 3.04 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। 12,615 घंटे मोबाइल इंटरनेट शटडाउन के कारण करीब 2.37 अरब डॉलर, जबकि 3700 घंटे मोबाइल और फिक्स्ड लाइन इंटरनेट शटडाउन के कारण 67.84 करोड़ डॉलर का नुकसान इकोनॉमी को हुआ।
साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञ गौतम कुमावत बताते हैं कि ई-कॉमर्स, होटल, पर्यटन, बैंकिंग से लेकर तमाम तरह के व्यवसायों में इंटरनेट की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इंटरनेट अधिकांश लोगों की जिंदगी का भी अहम हिस्सा है। यहां तक कि सरकार भी अपने कई काम ऑनलाइन यानी वेबसाइट और ऐप के जरिये करती है। लिहाजा इंटरनेट बंद होने से हर किसी को परेशानी का सामना करना पड़ता है और आर्थिक नुकसान भी होता है। ऐसे में पुलिस और प्रशासन को तकनीक में दक्ष बनाने की जरूरत है ताकि वह अफवाहें या फेक न्यूज का प्रसार रोकने के लिए सिर्फ इंटरनेट बंद करने के विकल्प के बारे में ही नहीं सोचें। प्रोएक्टिव पुलिसिंग, साइबर कैपेसिटी बिल्डिंग और सोशल मीडिया मॉनिटरिंग या इंटेलीजेंस टूल्स का इस्तेमाल करने पर पुलिस, सुरक्षाबलों व प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। इंटेलीजेंस टूल्स के जरिए पुलिस की साइबर टीम लोगों को भड़काने वाले संदेश भेजने वालों को रीयल टाइम में ट्रेस कर सकती है और उन पर कार्रवाई कर हिंसा फैलने से रोक सकती है। इसके अलावा इंटरनेट बंद करने के बजाय कुछ समय के लिए सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स को प्रतिबंधित करना एक विकल्प हो सकता है। वहीं परीक्षा में नकल रोकने के नाम पर इंटरनेट बंद करने के बजाय परीक्षा केंद्र के आसपास जैमर लगाना बेहतर विकल्प है।
आखिरी विकल्प हो नेटबंदी
राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा का मानना है कि प्रशासन का इंटरनेट बंद कर देना उचित कदम नहीं है। कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए पहले पुलिस और प्रशासन को अपने दूसरे अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहिए। इंटरनेट बंद करना तो आखिरी विकल्प हो, क्योंकि नेटबंदी से हर वर्ग परेशान होता है।
वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पदस्थापित आईपीएस अधिकारी डॉ. महेश भारद्वाज का कहना है कि पुलिस और प्रशासन को इंटरनेट बंद करने का कदम कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाना पड़ता है। यह सच है कि इस दौरान आमजन को थोड़ी मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं, लेकिन देश, राज्य या शहर में शांति स्थापित करने और गलत व सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाले संदेशों को रोकने के लिए इंटरनेट बंद करना जरूरी हो जाता है। दरअसल, सोशल मीडिया या मैसेजिंग ऐप्स के यूजर्स बिना सत्यता की जांच किए झूठी खबरों को भी आगे करते हैं, जिससे माहौल बिगड़ सकता है।