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चीन से रूठी कंपनियों को नहीं भा रहा भारत

locationजयपुरPublished: Oct 08, 2019 07:06:24 pm

सिंगापुर। अमेरिका ( America ) और चीन ( China ) में चल रहे ट्रेड वार ( Trade War ) और कुछ अन्य बुनियादी कारणों की वजह से चीन में उत्पादन प्रभावित हो रहा है। इसके चलते ग्लोबल कंपनियां ( Global Companies ) अपनी उत्पादन इकाइयों ( Production Unit ) को दूसरे देशों में स्थानांतरित कर रही हैं। भारत इन कंपनियों के लिए बेहतरीन डेस्टिनेशन बताए जा रहे है, लेकिन आंकड़े इस बात का समर्थन नहीं कर रहे हैं।

चीन से रूठी कंपनियों को नहीं भा रहा भारत

चीन से रूठी कंपनियों को नहीं भा रहा भारत

ट्रेड वार की वजह से शुल्क में इजाफा तो हुआ ही है, चीन में लेबर लागत भी मंहगी हो गई है, जबकि कार्यबल, आकार और बाजार के हिसाब से भारत और इंडोनेशिया चीन के अच्छे विकल्प हैं। जनसंख्या के मामले में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है और युवाओं की संख्या के मामले में यह पहले नंबर पर है। यूएन के मुताबिक भारत के लोगों की औसत उम्र 30 वर्ष है। यहां लेबर लागत चीन के मुकाबले आधी है। फिर भी कई वजहों के चलते कंपनियां भारत जैसे देशों की जगह वियतनाम और थाइलैंड को प्राथमिकता दे रही हैं।
कंपनियों को अपनी प्रोडक्शन यूनिट्स स्थानांतरित करने के कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसमें सबसे पहली समस्या सेटअप की अधिक लागत है। इसके अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर, कम्यूनिकेशन और कनेक्टिविटी जैसी दूसरी समस्याएं भी हैं। किसी भी कंपनी के लिए अच्छा वेयरहाउस, ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक्स सर्पोट भी महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा कंपनी जहां अपनी यूनिट लगाने जा रही है वहां कुशल कर्मचारियों की तलाश भी उसके लिए एक चुनौती होती है। साथ ही साथ स्थानीय सरकार का सर्पोट, उपयुक्तटैक्स दरें और आसान कानूनी प्रावधान भी कंपनी की शुरुआत के लिए जरूरी चीजें हैं।
किसी भी कंपनी की शुरुआत के लिए औपचारिकताएं पूरी करने में मदद के मामले में भारत और इंडोनेशिया ने कई पैमाने पर सुधार किया है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। भारत को इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काफी निवेश की जरूरत है। इसके अलावा भूमि और श्रम सुधार की जरूरत भी है। एफडीआई को आकर्षित करने के लिए उपयुक्तटैक्स दर भी आवश्यक शर्त है।
सबसे अच्छी बात यह है कि भारत और इंडोनेशिया दोनों ही देश इन क्षेत्रों में काफी सुधार कर रहे हैं। भारत ने हाल में ही कॉरपोरेट टैक्स दरों में बड़ी कटौती की है। इसके अलावा नई कंपनियों के लिए भी सुविधाएं और छूट देने की शुरुआत हो चुकी है। हालांकि इसे सिर्फ शुरुआत कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत करने की बात कही थी। इसे अमली जामा पहनाने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है।
किसी कंपनी की शुरुआत के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण बिंदु बताया जाता है वो है ईज ऑफ डूइंग बिजनेस। वियतनाम में कंपनी की शुरुआत के लिए सिर्फ एक जगह से सारी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। यहां सरकार की ओर से सिर्फ एक व्यक्तिकंपनी से संबंधित सभी मामलों की औपचारिकताओं के लिए जिम्मेदार होता है। लेकिन भारत और इंडोनेशिया के साथ ऐसा नहीं है।
इंपोर्ट और एक्सपोर्ट दोनों को बढ़ावा देने के उपाय करने की जरूरत है। कोई भी कंपनी अगर भारत में उत्पादन करती है तो उसे अपने असेंबली वर्क के लिए इंपोर्ट करने की जरूरत भी होगी। मंहगी इंपोर्ट ड्यूटी उसके मार्ग में बाधा बनेगी। भारत में जर्मनी, जापान और चीन जैसा मैन्यूफैक्चरिंग कल्चर बनाने की जरूरत है।
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