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Rajasthan Assembly Election 2018: कई सीटों पर दलों की दाल नहीं गलने देते निर्दलीय

locationजयपुरPublished: Oct 20, 2018 09:43:59 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

चुनावी राजनीति में निर्दलीय प्रत्याशियों का अपना महत्व रहा है। निर्दलीय यानी जिसका कोई दल नहीं।

election 2018
अनंत मिश्रा/जयपुर। चुनावी राजनीति में निर्दलीय प्रत्याशियों का अपना महत्व रहा है। निर्दलीय यानी जिसका कोई दल नहीं। हर चुनाव में राजनीतिक दलों के दमदार प्रत्याशियों को हराकर जीत का झंडा फहराने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों की भूमिका हर चुनाव में बढ़ती जा रही है।
2013 में भी राज्य में निर्दलीयों ने राजनीतिक दलों को टक्कर दी थी। इस चुनाव में कुल 2,194 उम्मीदवारों में से 758 निर्दलीय थे।

यानी लगभग 34 फीसदी। इनमें से भले ही 7 प्रत्याशी जीते, लेकिन कई सीटों पर निर्दलीय पहले और दूसरे स्थान पर आने वाले उम्मीदवारों का खेल बनाने और बिगाडऩे में सहायक साबित हुए। 2008 के चुनाव में 14 और 2003 में 15 निर्दलीय जीते थे।
पिछले विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने मुकाबले को रोचक बनाया था। जयपुर में किशनपोल सीट पर 21 तो आदर्शनगर में 20 निर्दलीयों ने ताल ठोकी थी। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस की तरफ से मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में थे। किशनपोल में 21 में से 15 निर्दलीय मुस्लिम थे तो आदर्शनगर में 20 निर्दलीयों में से 16 मुस्लिम प्रत्याशी थे। दोनों जगह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जीते थे।
जानकार कहते हैं कि इन दोनों सीटों पर इतने अल्पसंख्यक निर्दलीयों के मैदान में उतरने के पीछे भाजपा की रणनीति काम कर रही थी। किशनपोल व आदर्शनगर में निर्दलीयों की भूमिका को अनायास नहीं माना जा सकता।
इन दोनों सीटों पर भाजपा के रणनीतिकारों ने बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी खड़े करवाए। इससे नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा। हर चुनाव में कई सीटें निर्दलीय प्रत्याशियों की धमाचौकड़ी की गवाह पहले भी बनती रही हैं और आगे भी बनती रहेंगी।
जयपुर जिले की कोटपूतली सीट पर 26 में से 15 निर्दलीय उम्मीदवार थे। इस सीट पर पड़े कुल 1 लाख 37 हजार मतों में से निर्दलीय के खाते में 60 हजार मत गए थे। जयपुर जिले की ही विराटनगर सीट पर 20 उम्मीदवारों में से 13 निर्दलीय ही थे।
उदयपुर संभाग को छोड़ अन्य संभागों में निर्दलीय हमेशा ही बड़ी संख्या में चुनावी समर में ताल ठोकते रहे है। पाली जिले की जैतारण सीट पर चुनाव लडऩे वाले 19 प्रत्याशियों में से 13 निर्दलीय थे तो जालौर जिले की आहोर सीट पर 23 में से 12 प्रत्याशी निर्दलीय थे।
1 सीट, 1,024 निर्दलीय
तमिलनाडु के इरोड जिले की मोडासुरूचि सीट पर 1996 के विधानसभा चुनाव में 1,033 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था। इनमें 1,024 निर्दलीय प्रत्याशी थे। 1,033 में से 1,030 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी। खास बात ये कि 88 निर्दलीयों को एक भी वोट यानी अपना वोट भी नहीं मिला था।
निर्दलीय मुख्यमंत्री भी
निर्दलियों को अकसर सरकार गठन में राजनीतिक दलों को समर्थन देने पर मंत्री के रूप में इनाम मिलता है। किस्मत और हालात अनुकूल हों तो निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री की कुर्सी भी नसीब होती है।
झारखंड में 2006 में तब वहां निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा दो वर्ष के लिए मुख्यमंत्री बने थे। 2002 में मेघालय में एक खोंगलम को भी मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला था। खौंगलम भी निर्दलीय विधायक के रूप में चुनाव जीते थे।
1 ईवीएम, 16 प्रत्याशी
मतदान के दौरान एक ईवीएम में 16 प्रत्याशियों के नाम दर्ज हो सकते हैं। इससे अधिक प्रत्याशी होने पर दूसरी ईवीएम लगानी पड़ती है। राजनीतिक दलों की तरफ से अमूमन एक सीट पर छह से लेकर आठ नौ प्रत्याशी उतरते है। लेकिन निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या अधिक होने पर मतदान बूथ पर दूसरी ईवीएम लगाने की जरूरत पड़ती है।
07 निर्दलीय जीते थे राज्य के 2013 के विधानसभा चुनाव में

35 निर्दलीय जीते थे राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में

राज्य में वर्ष 1990 में सबसे अधिक 2,136 निर्दलीय उम्मीदवार थे
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