उर्दू भाषा सिर्फ एक जुबान नहीं अदब है। हिंदी के साथ-साथ उर्दू को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। उर्दू व हिंदी दोनों जुड़वां बहनें हैं, इसलिए दोनों की तरक्की जरूरी है। यह कहना है मशहूर शायर मीर आज़म अली ज़ैदी का।
जयपुर•Apr 14, 2024 / 10:10 am•
imran sheikh
उर्दू भाषा सिर्फ एक जुबान नहीं अदब है। हिंदी के साथ-साथ उर्दू को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। उर्दू व हिंदी दोनों जुड़वां बहनें हैं, इसलिए दोनों की तरक्की जरूरी है। यह कहना है मशहूर शायर मीर आज़म अली ज़ैदी का। बज़्मे मीर जयपुर की ओर से चैंबर ऑफ कॉमर्स के भैरोंसिंह शेखावत हॉल में आयोजित ‘रस्मे इजरा आबशारे आजम’ कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उर्दू सुकून हासिल करने का भी जरिया है। इसलिए उर्दू की बेहतरी के लिए अभिभावकों को चाहिए कि वें अपने बच्चों को उर्दू की तालीम दें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान उर्दू अकादमी जयपुर के पूर्व अध्यक्ष डाॅ.हबीबुर्रहमान नियाज़ी ने की जबकि मुख्य अतिथि प्रो.इराक रज़ा ज़ैदी थे। विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत आइएएस ए.आर.खान थे। इस मौके पर उर्दू की समस्या व संभावनाएं विषय पर वक्ताओं ने कहा कि उर्दू जुबान मोहब्बत की पहचान है। ग़ज़लें, शायरी सुनने के बाद मानसिक शांति मिलती है।
इससे पूर्व मशहूर शायरा मलका नसीम, एजाज टोंकी, काविश मुरादाबादी, कारी इज़्ज़तुल्लाह, शकील आदिल, ऐहतेशाम अब्बास हैदरी, शारजाह से सैय्यद आसिफ़ अली, रज़ा शैदाई, महबूब अली, तबस्सुम रहमानी, जमील अख्तर, ताहिर जमाली, गुलाम रसूल, अनीस नियाज़ी आदि शायरों ने कलाम पेशकर मुशायरे को परवान चढ़ाया।
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