प्रदेश में 10 सितम्बर से 6 अक्टूबर तक मंत्रालयिक, रोडवेज, पंचायती राज, ग्राम सेवक समेत कुछ अन्य कर्मचारी सामूहिक अवकाश लेकर हड़ताल पर रहे थे। सरकार ने सख्ती दिखाते हुए नो वर्क, नो पे के आदेश दिए थे। 6 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई और सभी आंदोलन स्वत: ही समाप्त हो गए। वहीं सरकार से कर्मचारियों का समझौता भी नहीं हो सका। इसके अलावा आचार संहिता के चलते सामूहिक अवकाश वाले दिनों का समायोजन भी नहीं हो सका। ऐसे में कर्मचारियों का सितम्बर में करीब 10 से 15 दिन के वेतन कटौती का सामना करना पड़ गया।
वहीं अक्टूबर में भी करीब 6 दिन की वेतन कटौती तय मानी जा रही है। हड़ताल में शामिल कर्मचारियों का वेतन करीब 25 से करीब 80 हजार रुपए प्रतिमाह तक है। ऐसे में इनको करीब 12 से 30 हजार रुपए तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
ऐसे में अब इन कर्मचारियों का कहना है कि त्योहारी सीजन में इस तरह की कटौती से घरेलू बजट बिल्कुल बिगड़ गया है। हर वर्ष दिवाली पर मिलने वाले बोनस से अतिरिक्त खरीदारी करते रहे हैं, लेकिन इस बार इससे कुछ नहीं होने वाला।
किस वर्ग के कितने कर्मचारी हड़ताल पर
मंत्रालयिक
55000 सरकारी और 45000 निगम-बोर्ड
20000 रोडवेजकर्मी
12000 पंचायती राज वेतन कटौती से धरी रह गई योजनाएं
मंत्रालयिक कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने उन्हें नुकसान पहुंचाया है। दिवाली पर कर्मचारियों और उनके परिवारों की खरीदारी को लेकर कई तरह की योजनाएं बनी रहती है। वेतन कटौती से उनके सामने काली दिवाली मनाने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है।
मंत्रालयिक
55000 सरकारी और 45000 निगम-बोर्ड
20000 रोडवेजकर्मी
12000 पंचायती राज वेतन कटौती से धरी रह गई योजनाएं
मंत्रालयिक कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने उन्हें नुकसान पहुंचाया है। दिवाली पर कर्मचारियों और उनके परिवारों की खरीदारी को लेकर कई तरह की योजनाएं बनी रहती है। वेतन कटौती से उनके सामने काली दिवाली मनाने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है।
इधर जनता ने कहा : सरकार का फैसला सही
– सरकार का वेतन काटने का फैसला बिल्कुल सही है। मेरा आए दिन दौसा जाना होता है। हड़ताल के दौरान मेरा व्यापार भी प्रभावित हुआ और पैसा ज्यादा गया। हड़ताल की है तो पैसा तो कटना ही चाहिए।
गोपाल अग्रवाल सैकड़ा
– सरकार का वेतन काटने का फैसला बिल्कुल सही है। मेरा आए दिन दौसा जाना होता है। हड़ताल के दौरान मेरा व्यापार भी प्रभावित हुआ और पैसा ज्यादा गया। हड़ताल की है तो पैसा तो कटना ही चाहिए।
गोपाल अग्रवाल सैकड़ा
– जब काम ही नहीं किया तो उन दिनों के पैसे क्यों मिलें? विरोध के दूसरे तरीकों पर कर्मचारी विचार करते तो ज्यादा अच्छा रहता। काम ठप करने से आम आदमी को भी तो परेशानी होती है।
प्रभुदयाल विजयवर्गीय
प्रभुदयाल विजयवर्गीय