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जयपुर

पितृ ऋण और इससे मुक्ति की राह की व्याख्या, ‘बीजी की पूर्णता’ पर प्रतिक्रियाएं

कोठारी ने पितृ ऋण की विस्तार से जानकारी दी है। भारतीय विवाह-बन्धन भी इस ऋण से मुक्ति के लिए है। पुत्र प्राप्ति कर पितृ ऋण से उऋण हो जाना भी इसी का हिस्सा है। लेख में सही बताया गया है कि प्रत्येक पुरुष में ऊपर की छह पीढिय़ों से ऋणरूप 56 सहोमात्रा प्रतिष्ठित रहती है तथा 28 स्वयं अपनी स्वतंत्र रूप से उत्पन्न करता है।

जयपुरApr 27, 2024 / 05:51 pm

जमील खान

विभिन्न ऋणों में बीजी पुरुष की भूमिका पर केंद्रित पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की आलेखमाला ‘शरीर ही ब्रह्मांड’ के आलेख ‘बीजी की पूर्णता’ को प्रबुद्ध पाठकों ने पितृ ऋण और इससे उऋणी होने की गहन व्याख्या बताया है। उनका कहना है कि लेख मानव जीवन के अहम पहलुओं पर प्रकाश डालने वाला है। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से…
गुलाब कोठारी का ‘बीजी की पूर्णता’ लेख पढ़ा। बहुत अच्छा लगा। लेख में पुरुष और शरीर की जो बात कही गई है वह सीधे मानव जीवन से जुड़ी है। लेख में ऐसी कई उपयोगी जानकारियां हैं।-अजब सिंह राजपूत, बीइओ, सीहोर
कोठारी ने पितृ ऋण की विस्तार से जानकारी दी है। भारतीय विवाह-बन्धन भी इस ऋण से मुक्ति के लिए है। पुत्र प्राप्ति कर पितृ ऋण से उऋण हो जाना भी इसी का हिस्सा है। लेख में सही बताया गया है कि प्रत्येक पुरुष में ऊपर की छह पीढिय़ों से ऋणरूप 56 सहोमात्रा प्रतिष्ठित रहती है तथा 28 स्वयं अपनी स्वतंत्र रूप से उत्पन्न करता है। इस तरह के लेख आज की पीढ़ी को अध्यात्म विज्ञान को समझाने के लिए जरूरी हैं।-मोहित पटेल, मंडला
स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जिस तरह से अर्धनारीश्वर महादेव में माता पार्वती समाहित होती है, इन्हें अलग-अलग रखकर कोई भी क्रिया पूर्ण नहीं हो सकती है, उसी तरह अग्नि की प्रधानता में पुरुष और उसे सौम्य रखने में स्त्री का सोम होना आवश्यक है। ब्रह्माण्ड में ईश्वरीय शक्तियों की प्रधानता से नारी का शक्ति रूप अवतरित होता है। लेकिन, पुरुष का देवत्व रूप उसे नियंत्रित करने के लिए जरूरी है। यही वजह है कि हर देवता के साथ देवी का नाम भी शामिल होता है। आज स्त्री स्वच्छंद होने की सोच लेकर स्वयं को अकेली कर रही है। वह सोचती है कि पुरुष के बिना जिंदगी बेहतर जी सकती है। वहीं पुरुष भी स्त्री को केवल भोगने की वस्तु मान बैठा है। यही कारण है कि उसे नाना प्रकार के दोषों से होकर जीवन चलाना पड़ रहा है। जीवन को सुखद और प्रेमपूर्वक चलाना है तो दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना आवश्यक है।-डॉ. पं. सत्येन्द्र स्वरूप शास्त्री, ज्योतिषाचार्य एवं आध्यात्मिक गुरु, जबलपुर
गुलाब कोठारी का लेख मैं लगातार पढ़ती हूं। इनमें वेदों का ज्ञान समाहित रहता है। इस बार के लेख में तत्त्व शुक्र रूप से पुरुष की प्रतिष्ठा की जानकारी महत्त्वपूर्ण है।-सुनंदा गावंदे, कवि, बुरहानपुर
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