दरअसल, बीते चुनावों में बसपा, आप और रालोपा ने जनता में अपनी स्वीकार्यता को साबित की है। लेकिन सांसद रालोपा में हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व को छोड़े तो बसपा और आप में ऐसा कोई चेहरा अब तक नहीं, जिसकी पूरे प्रदेश में पकड़ हो। निर्दलीय विधायकों में भी अ धिकतर बड़े नाम किसी ना किसी दल से जुड़े हैं। यदि संग्राम की परिणाम में इन दलाें को ऐसा कोई चेहरा मिल जाए तो अगले चुनाव में इन दलों को दायरा बढ़ाने में मदद मिलेगी।
कांग्रेस में सिर फुटौव्वल के मद्देनजर जातिगत वोट बैंक के समीकरण भी बैठाए जा रहे हैं। सियासी संकट का यदि जाति आधारित समाधान निकाले जाने मैसेज जाता है तो तीसरे मोर्चे के दलों को सहानुभूति कार्ड खेल कर शेष वोट बैंक में सेंध लगाने का मौका मिल जाएगा।
बीते चुनाव में अन्य प्रमुख दल कुल पड़े वोटों का ढाई से चार प्रतिशत तक ले गए थे। इससे अलावा निदर्लीयों को अलग से दस प्रतिशत वोट मिले थे। सभी को एक साथ देखें तो चुनावी नजरिए से अन्य की ताकत छोटी नहीं कही जा सकती।
पार्टी को बीते चुनाव 0.38 प्रतिशत वोट मिले थे। पंजाब जीत के बाद पार्टी राजस्थान और गुजरात में भी सरकारों के खिलाफ बड़ा प्रचार अ भियान चला रही है। शहरी मध्यम वर्गीय वोटर में पकड़।
पार्टी ने पिछले चुनाव में 4.3 प्रतिशत वोटों के साथ छह सीटें जीती थीं। अभी हर विधानसभा स्तर पर संगठन गतिवि धियां संचालित कर रही है। जातिगत आधार पर वोट बैंक में खासी पकड़।
पार्टी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की प्रदेश भर में फायरब्रांड नेता की पहचान। बीते चुनाव 2.40 प्रतिशत वोट लेकर तीन सीटें जीतीं। सियासी संग्राम में खुल कर सचिन पायलट के समर्थन में आए।
जनजाति जिलों में दो सीटों पर पार्टी उम्मीदवार चुने गए। कुल 0.72 प्रतिशत वोट लिए। लेकिन जिन सीटों पर लड़ी, वहां वोट शेयर 13 प्रतिशत तक रहा।