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जयपुर

पाई-पाई के लिए मोहताज गवरीदेवी

गवरीदेवी देवासी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि बुढ़ापे में ये दिन देखने पड़ेंगे। वक्त की मार ने बेटे व बहू छीन लिए और अब दो पोते व दो पोतियों की जिम्मेदारी उठाने की जद्दोजहद में वह पाई-पाई के लिए मोहताज है।

जयपुरMay 06, 2016 / 03:51 am

afjal

गवरीदेवी देवासी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि बुढ़ापे में ये दिन देखने पड़ेंगे। वक्त की मार ने बेटे व बहू छीन लिए और अब दो पोते व दो पोतियों की जिम्मेदारी उठाने की जद्दोजहद में वह पाई-पाई के लिए मोहताज है। 
जीवन के पचपन वसंत देख लिए। जिन्दगी में कभी धूप तो कभी छांव वाली स्थिति रही। शादी के बाद जब पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो परिवार में खुशियां छा गईं। 

पुत्र वनाराम जैसे-जैसे बड़ा होने लगा, गवरीदेवी व पति ओबाराम देवासी सतरंगी सपने बुनने लगे, लेकिन सपने साकार होते उससे पहले ही गवरीदेवी पर मुसीबतों को पहाड़ टूट पड़ा। पति स्वर्ग सिधार गया। 
उस समय वनाराम महज दस साल का था। गवरीदेवी ने हिम्मत नहीं हारी। बेटे को बड़ा करने, पढ़ाने व उसका ब्याह कर घर में बहू लाने का सपना साकार करने के लिए रात-दिन मजदूरी की और वह दिन भी आ गया, जिसका उसे इंतजार था। 
बेटा बड़ा हो गया। कमाने लगा। बेटे का ब्याह हो गया और घर में बहू भी आ गई। बहू की गोद भरी और घर में लक्ष्मी आई तो परिवार में खुशियां छा गईं। फिर तो रफ्ता-रफ्ता गवरीदेवी का परिवार भरा-पूरा हो गया। 
घर में बेटे व बहू के साथ दो पोते व दो पोतियां देखकर वह फूली नहीं समाती। उसका संसार सुखमय हो गया।

कभी गुहार लगाती है तो कभी गिड़गिड़ाती है

पति की मृत्यु के समय मेहनत-मजदूरी कर भी वनाराम को बड़ा कर लिया, पर पोते-पोतियों को बड़ा करने के लिए उसकी हड्डियों में वह दम नहीं रहा। किसी ने विधवा पेंशन शुरू करवाई तो उसे हर माह पांच सौ रुपए मिलने लगे, जिससे वह खुद के साथ पोते-पोतियों की भी परवरिश करने लगी। 
दो माह से पांच सौ रुपए भी मिलने बंद हो गए तो खुद के खाने व बच्चों को दो जून की रोटी मुहैया कराने के लाले पडऩे लगे हैं। बावजूद इसके उसने हिम्मत नहीं हारी है। अभी भी वह पेंशन की राशि के साथ पालनहार योजना का फायदा दिलाने के लिए लोगों से गुहार लगाती रहती है। गिड़गिड़ाती रहती है। 
नन्हे-मुन्नों का संसार दादी की गोद

सबसे बड़ी पोती नौ साल की संगीता, सात साल के पोते छगनलाल, पांच साल की पोती अनीता व डेढ़ साल के पोते अरविन्द की पूरी दुनिया दादी की गोदी में समाई हुई है। संगीता पांचवीं व छगन पहली कक्षा में पढ़ता है। 
अनीता को इस वर्ष स्कूल भेजने का मानस है। दादी इन्हें छोड़कर कहीं मजदूरी पर भी नहीं जा सकती है। बच्चों को तीज-त्योहार पर अच्छा खाना खिलाना चाहती है। अच्छे कपड़े पहनाना चाहती है, लेकिन बेबस है।
बच्चों को पालनहार की सुविधा नहीं

सरकार की ओर से अनाथ बच्चों की परवरिश व पढ़ाई के लिए पालनहार योजना चलाई जा रही है, पर गवरीदेवी को इसका फायदा नहीं मिला। 

सरपंच से सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में वे खुद छगनलाल व संगीता के पालनहार योजना के आवेदन जमा करवाकर आए हैं, पर अभी लाभ नहीं दिया गया। सरपंच ने भी विभाग पर अनदेखी का आरोप लगाया। 
सांवरिया जरूर आएगा मदद करने

जो कुछ भी हो, गवरीदेवी को पूरा भरोसा है कि सांवरिया उसकी मदद करने जरूर आएगा। सांवरिया से उसका तात्पर्य ईश्वर से तो है ही, साथ में किसी सामाजिक व सेवाभावी संगठन या दानदाता या बच्चों की पढ़ाई-लिखाई व परिवरिश करने वाले से है। 
दर-दर की ठोकरें

सरकार से हर माह पांच सौ रुपए पेंशन के मिल रहे थे, लेकिन दो माह से अचानक बंद हो गए। पंचायत कार्यालय में जाती है तो बताया जाता है कि कागजात बनाकर आगे भेज दिए। 
अब ई-मित्र में जाना होगा। ई-मित्र केन्द्र के भी कई चक्कर लगा लिए, पर अभी तो पैसा नहीं मिला। वह जाती है तो उसकी बात सुनी तो जाती है पर कार्रवाई के नाम पर अभी तक उसे कोई नतीजा नहीं मिला।
 वास्तव में गवरीदेवी का परिवार गरीब है। चार छोटे-छोटे बच्चे हैं। परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। कोई सहयोग करे तो परिवार की स्थिति सुधर सकती है। 

रावताराम,

समाजसेवी, खाम्बल
 सरकार की ओर से इस परिवार को कोई सुविधा नहीं मिल रही है। पेंशन भी दो माह से बंद है। परिवार की स्थिति बहुत खराब है। कोई संस्थान या समाजसेवी परिवार का सहयोग करंे तो स्थिति सुधर सकती है। 
तलसाराम, 

समाजसेवी, सिरोही

 मामला मेरे ध्यान में है। परिवार को आर्थिक सहायता के लिए राज्यमंत्री ओटाराम देवासी व सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अधिकारी से मिल चुका हूं, पर अभी तक कोई सुविधा नहीं मिली। पंचायत से जो भी सुविधा मिलती है, वह मुहैया करवा दी जाएगी।
 डूंगाराम मेघवाल, 

सरपंच, खाम्बल 

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