औषधीय नर्सरी बन सकती है आय का बेहतर जरिया
कृषि क्षेत्र में हैं रोजगार के बेहतर विकल्पप्रति हैक्टेयर 50 हजार से 2 लाख रुपए तक की हो सकती है आमदनी
औषधीय नर्सरी बन सकती है आय का बेहतर जरिया
जयपुर।
वर्तमान में रोजगार (employment) के नए विकल्प तैयार करना एक बड़ी चुनौती है। कुछ दशकों पूर्व जहां कृषि रोजगार और आय का सबसे बड़ा जरिया थी वहीं आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति की होड़ में खेती-किसानी पिछड़ती जा रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (mahatma gandhi) कहा करते थे भारत गांवों में बसता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता हमारे देश की अमूल्य धरोहर है। इस धरोहर को यदि हमें कायम रखना है तो खेती किसानी की ओर अधिक ध्यान देना होगा।
रोजगार की तलाश में युवा गांवों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। ये युवा शहरों की चकाचौंध और भागदौड़ भरी जीवनशैली की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जो कि भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा है।
अब दौर बदल रहा है। युवा गांवों में रहकर भी अपनी आजीविका चला सकते हैं। बस आवश्यकता है तो सही मार्गदर्शन की। सरकार की ओर से कृषि और बागवानी (gardening) को लेकर कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं, लेकिन प्रचार प्रसार और जानकारी के अभाव में उनसे ग्रामीण लाभान्वित नहीं हो पाते हैं।
आज हम आपको ऐसे ही रोजगार के बारे में बता रहे हैं जो कि कृषि और बागवानी से जुड़ा है और कम लागत में अधिक फायदा दे सकता है। यह रोजगार युवाओं के साथ ही घर पर रहने वाली महिलाओं के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं औषधीय नर्सरी की।
बदलते जमाने में औषधीय पौधों की मांग दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है। महिलाएं और युवा छोटी सी जगह पर औषधीय पौधों की खेती कर अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। औषधीय पौधों की नर्सरी लगा कर खासा मुनाफा कमा सकते हैं। इन पौधों की खासियत यह है कि ये बंजर और अकसर जलजमाव वाले इलाकों में खूब पनपते हैं।
स्टीविया, गुग्गुल, खस, बेल, तुलसी, गुडची, पचौली, एलोवेरा, सतावर, सिट्रोनेला, लेमनग्रास, सर्पगंधा, जेट्रोफा, मेंथा, कलिहारी, ब्राह्मी, बच, आंवला आदि औषधीय पौधों की खेती कर या नर्सरी लगा कर महिलाएं खुद का कारोबार शुरू कर सकती हैं।
इनकी खेती से प्रति हैक्टेयर 50 हजार से 2 लाख रुपए तक की आमदनी हो सकती है। ग्रामीण और शहरी महिलाएं थोड़ी सी ट्रेनिंग ले कर आसानी से औषधीय पौधों की नर्सरी का कारोबार शुरू कर सकती हैं।
एक्सपट्र्स के अनुसार ‘नर्सरी लगाने व चलाने में विशेष रकम व मेहनत की जरूरत नहीं होती है। जो महिलाएं और युवा नर्सरी लगाना चाहते हैं वे सबसे पहले इस बारे में जानकारी हासिल करें। कृषि विभाग से लाइसेंस लेकर विधिवत ट्रेनिंग लेने के बाद काम शुरू कर सकते हैं। इसके लिए सरकार अनुदान भी देती है। इसका प्रपोजल बनाकर आप अपने जिला कृषि पदाधिकारी के कार्यालय में जमा कर सकते हैं। जिनके पास कम जमीन है उनके लिए नर्सरी का कारोबार काफी फायदेमंद है।
यदि हम मानें कि एक मिर्च में 50 बीज होते हैं और उन बीजों से कम से कम 30 पौधे उगते हैं। बाजार में मिर्च के एक पौधे की कीमत 1 रुपया है। इस तरह एक मिर्च से कम से कम 30 रुपए की कमाई होती है, जिसमें से 15 रुपए नेट प्रोफिट होता है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि नर्सरी लगाने का काम कितना फायदेमंद है।
बंजर और बाढग़्रस्त इलाकों में भी खस की कामयाब खेती की जा सकती है। खस और पचौली इत्र बनाने के काम आते हैं और बाजार में खस की कीमत 25 से 30 हजार रुपए प्रति किलो है। शरबत और सुगंधित साबुन बनाने में भी इसका उपयोग होता है। इसके अलावा पटना, नालंदा और भोलपुर जिले की मिट्टी एलोवेरा की खेती के लिए काफी लाभकारी है। एलोवेरा के साथ आंवला की अंतरवर्ती खेती करने से कमाई को दोगुना किया जा सकता है।
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