GSDP सदैव जीवीए से ऊंची रहती है। जीवीए उत्पादक या सप्लाई से संबंधित अर्थव्यवस्था की तस्वीर दिखाने वाला पहलू है, जबकि GSDP उपभोक्ता या मांग आधारित तस्वीर को दिखाता है।
वर्ष कृषि उद्योग सर्विस
1996-97 8.61 24.36 37.03
1999-00 34.20 24.08 41.72
2003-04 32.39 24.49 43.12 कृषि को नई परिभाषा देने की जरूरत
कृषि और उससे सम्बद्ध क्षेत्र प्राइमरी सेक्टर से जुड़ा हुआ है। प्रदेश की कृषि को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। पहले गांव में बाजार लगता था। फसलों के उत्पादन, ट्रेड, प्रसंस्करण और विपणन को भी कृषि सेक्टर के दायरे में लिया जाना चाहिए। विपणन में भंडारण, परिवहन, पैकेजिंग व रिटेलिंग गतिविधियां भी शामिल हों। किसानों में अवसाद के भी मामले सामने आते हैं। विपणन सुधार के प्रयास हों, जिससे किसानों को फसलों का उचित मूल्य मिल सके। मेरा अपना अनुभव है कि 1960 से अब तक तीन चरण में विपणन को लेकर सुधार हुए। कृषि विपणन में सुधार के लिए यह आवश्यक है कि इसे राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में शामिल किया जाए और इसके लिए संविधान संशोधन हो। राज्य सूची का विषय होने से सुधार के लिए कानून में संशोधन में 15-16 साल लग जाते हैं और कई राज्यों में ऐसा संशोधन हो ही नहीं पाता है। इसके लिए जीएसटी कौंसिल जैसी बॉडी बन सकती है। इसके अलावा ऐसे सुझाव भी हैं, जिनसे वित्त आयोग के दल के सामने मांग रखकर राज्य सरकार लाभ ले सकती है। -प्रो. एस एस आचार्य, कृषि अर्थशास्त्री
प्रदेश में पानी की समस्या है और अभी नदियों को जोडऩे की योजना पर बहुत धीमे काम हो रहा है। वर्षा जल पुनर्भरण को प्रदेश में प्रोत्साहन मिलना चाहिए, यहां शुष्क क्षेत्र अधिक होने के आधार पर केन्द्र सरकार से अतिरिक्त धन की मांग की जा सकती है। बूंद-बूंद सिंचाई पर काफी काम हुआ है, इसके लिए भी वित्त आयोग से अतिरिक्त धन मांगा जा सकता है। कई निच ( NICHE ) कमोडिटी जैसे खजूर, आंवला, कसूरी मैथी, मथानिया की मिर्ची, झालावाड़ का संतरा है। जैविक खेती हो रही है। इन सबके लिए विशेष पैकेज मांगा जाए।