अस्पताल तो है, लेकिन डॉक्टर नहीं
पेशे से कांट्रेक्टर विवेक देवांगन ने बताया कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर शहर से आठ किमी दूर मेडिकल कॉलेज तो खोल दिया गया है। लेकिन यहां डॉक्टर नहीं है। वहीं अस्पताल में डॉक्टर हैं। इतना ही नहीं इस चक्कर में महारानी अस्पताल को भी सिर्फ रेफर सेंटर बनाकर रख दिया गया है। डॉक्टर की समस्याओं को दूर करना जरूरी है। मांग को हमेशा दरकिनार किया गया है।
मैदान में आयोजन, खिलाड़ी क्या करें
खेलों से जुड़े सुनील पिल्ले ने कहा कि शहर के खेल मैदान में खेल कम और आयोजन ज्यादा हो रहे हैं। एेसे में वर्तमान जनप्रतिनिधि और न ही जिम्मेदार इस ओर ध्यान दे रहे हैं। यही कारण है कि शहर के खिलाड़ी अपनी प्रतिभा को नहीं निखार पा रहे हैं। जनप्रतिनिधियों में जो इस ओर ध्यान देगा और मांग पूरा करने का वादा करेगा खिलाड़ी उन्हें ही अपना समर्थन देंगे।
खेल को रोजगार परख बनाना जरूरी
राजीव सिंह ने भी कहा कि खेल आज केवल मनोरंजन का पात्र बनकर रह गया है। क्यों कि खेल के माध्यम से शहर के किसी को भी अब तक नौकरी नहीं मिली है। इसलिए जरूरी है कि खेल में रोजगार की संभावनाओं को तलाशा जाए, ताकि इस ओर भी अधिक से अधिक झुकाव हो और मोबाइल की दुनिया से लोग बाहर भविष्य खेल में तलाशें। यहां मैदान का बचना जरुरी है।
पार्कों में करोड़ों खर्च फिर भी स्थिति बदतर
विद्यार्थी अनिल सरकार का कहना है कि शहर के पार्कों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। लेकिन एेसा नहीं कि यहां पर मरम्मत कार्य नहीं हुए। लेकिन कमीशन के चक्कर में इस तरह से पार्कों का उन्नयन किया गया कि कुछ ही दिन में फिर से स्थिति खराब हो गई।अब तो बच्चों को भी पार्कों में भेजने से लगता है डर। बच्चों के लिए पार्कों की अच्छी सुविधां होनी आवश्यक है।
साफ पानी का वादा बरसों से अधूरा
नईम कुरैशी का कहना है कि सरकार बुनियादी सुविधा गांव गांव तक पहुंचाने का दावा जरूर करती है, लेकिन शहर के ही कई इलाके हैं जहां के लोग साफ पानी के लिए सालों से तरस रहे हैं। वहीं अमृत योजना के दौरान लोगों के बीच साफ पानी की उम्मीद जरूर जागी लेकिन लंबे अरसे से बंद काम को देख लगता है कि जनता को अभी और लंबा समय इंतजार करना होगा।