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इनसे डरकर बाघ भी हट जाते हैं पीछे, कॉलर आइडी लगाकर 24 घंटे हो रही मॉनीटरिंग

locationजबलपुरPublished: Sep 08, 2018 01:24:56 am

Submitted by:

abhishek dixit

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के वैज्ञानिकों की टीम कान्हा नेशनल पार्क में कर रही रिसर्च

Wild Life

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जबलपुर. बाघों के प्रतिस्पर्धी माने जाने वाले जंगली कुत्तों का कुनबा नेशनल पार्कों में तेजी से कम हो रहा है। इसका कारण तलाशने के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के वैज्ञानिकों की टीम ‘इंटेंसिव मॉनीटरिंग एंड स्टडी ऑफ डिसपर्सल ऑफ टाइगर एंड को पे्रडेटर प्रे एट कान्हा टाइगर रिजर्व रिसर्च प्रोजेक्ट’ के तहत रिसर्च कर रही है। बाघों की तर्ज पर वाइल्ड डॉग को कॉलर आइडी लगाकर 24 घंटे मॉनीटरिंग की जा रही है। वैज्ञनिकों के अनुसार जंगली कुत्ते झुंड में रहते हैं। बाघ जिन जानवरों का शिकार करते हैं, जंगली कुत्ते भी सामूहिक रूप से उन्हीं का शिकार करते हैं। इसलिए इन्हें बाघों का प्रतिस्पर्धी माना जाता है। ये झुंड में हों तो बाघ भी पीछे हट जाते हैं।

आइयूसीएन की रेड लिस्ट में
विशेषज्ञों के अनुसार पिछले 10 साल में जंगली कुत्तों की संख्या में कमी आई है। कान्हा, पेंच और सतपुड़ा नेशनल पार्क में जंगली कुत्ते हैं, जबकि बांधवगढ़ और पन्ना नेशनल पार्क में सिर्फ मौजूदगी है। महाराष्ट्र में भी इनकी संख्या कम हुई है। उत्तर भारत के जंगलों में तो ये नजर ही नहीं आते। द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) ने वाइल्ड डॉग को रेड लिस्ट में शामिल किया है।

मुक्की रेंज में लगाई कॉलर आइडी
रेंजर क्रांति झारिया ने बताया, कान्हा नेशनल पार्क के मुक्की रेंज में पिछले साल जंगली कुत्तों का सात का झुंड था, जो अब 14 का हो गया है। यहां 30 जून को एक वाइल्ड डॉग को कॉलर आइडी लगाई गई। इनकी टेरिटरी 100 वर्ग किमी में होती है। पार्क के फेन सेंक्चुरी, भैसानघाट और सूपखार रेंज में 40-45 जंगली कुत्ते बचे हैं। रिसर्च प्रोजेक्ट में बाघों के रहवास में जंगली कुत्तों के स्वभाव, प्रजनन दर और संख्या कम होने का कारण तलाशा जा रहा है। पेंच और सतपुड़ा के आधा दर्जन कुत्तों को भी कॉलर आइडी लगाई जाएगी।

नेशनल पार्कों में जंगली कुत्तों की संख्या लगातार कम हो रही है। यह जैव विविधता के लिए खतरा है। रिसर्च प्रोजेक्ट में इनकी संख्या कम होने का कारण पता लगाया जाएगा। इन्हें संरक्षित करने की रिपोर्ट मध्य प्रदेश शासन को भेजी जाएगी।
डॉ. उज्ज्वल कुमार, प्रोजेक्ट साइंटिस्ट, डब्ल्यूआइआइ, देहरादून

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