ग्वारीघाट में मां गौर ने किया तप
नर्मदा तीर्थ के नाम से विख्यात जबलपुर के मुख्य नर्मदा तट ग्वारीघाट को लेकर एक किंवदंति जुड़ी है। नर्मदा चिंतक स्व. द्वारिका नाथ शास्त्री ने अपनी पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया है कि ग्वारीघाट तट पर माता गौरी यानि मां पार्वती ने तपस्या की थी। उनकी स्मृति को दर्शाता गौरी कुंड यहां आज भी मौजूद है। शुरुआत में ग्वारीघाट को गौरीघाट के नाम से जाना था, जो कालांतर में बदलकर ग्वारीघाट हो गया है। इस घाट पर रोजाना हजारों की संख्या में नर्मदा व शिव पार्वती के भक्त स्नान पूजन आदि के लिए पहुंचते हैं। मकर संक्रांति पर सोमवार को यहां इतन श्रद्धालु पहुंचे कि तट पर पैर रखने के लिए भी जगह नहीं बची थी।
शिवलिंग के लिए स्वयं बनी जिलहरी
ग्वारीघाट से बांयी ओर कुछ दूरी पर स्थित नर्मदा का एक और प्राचीन घाट है। इस घाट की कहानी शिवलिंग से जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव की पिंडी स्थापित होने के लिए घाट के पत्थरों से जिलहरी स्वयं निर्मित हो गई थी, जो आज भी मौजूद है। इसलिए इस घाट को जिलहरी घाट कहा जाने लगा। यहां भी मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं का मेला रहा।
तपोभूमि का अहसास दिलाता सिद्ध घाट
यहां योगी तपस्वी और ध्यानी भगवान शिव और शक्ति स्वरूपा की भक्ति में लीन होकर बैठा करते थे। यहां एक कुंड है जिसमें पूरे साल पानी भरा रहता है और बहकर नर्मदा में मिल जाता है। तपस्वियों को शिव-शक्ति से सिद्धियां यहीं मिला करती थीं, जिससे इसका नाम सिद्धघाट पड़ गया। यहां के कुंड की मिट्टी शरीर में लगाने से चर्म रोग समाप्त हो जाते हैं।
यहां प्रसिद्ध तिल भांडेश्वर
प्राचीनकाल में तिल मांडेश्वर मंदिर यहां था। जहां भगवान शिव की विशेष आराधना पूजन व ध्यान किया जाता था। सप्त ऋषियों ने यहीं तपस्या करके तिल से स्नान किया था। इसलिए इस तट का नाम तिलवारा घाट पड़ा। यहां वैसे तो रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन मकर संक्रांति पर विशेष मेला लगता है।
लम्हेटाघाट में पशुपतिनाथ
नर्मदा किनारे प्राचीन मंदिरों के कारण इस घाट का विशेष महत्व है। इस घाट पर श्रीयंत्र मंदिर है, जिसे लक्ष्मी माता का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में अनुष्ठान करने से सुख-समृद्धि की प्राप्त होती है। नेपाल की तरह यहां भी भगवान पशुपति नाथ का मंदिर है। जानकारों के अनुसार यह मंदिर बेहद प्राचीन है। चूंकि यह तट लम्हेटा गांव के अंतर्गत आता है, इसलिए इसे लम्हेटा घाट कहा गया है। एक रोचक तथ्य यह भी है कि इस घाट का उत्तरी तट लम्हेटा और दक्षिणी तट लम्हेटी कहलाता है। साथ ही यहां के फॉसिल्स को लम्हेटा फॉसिल्स के नाम से जाना जाता है, जो अति प्राचीन हैं।
पंचवटी घाट में आए थे श्रीराम
इस घाट को लेकर मान्यता है कि 14 वर्ष वनवास के दौरान भगवान श्रीराम यहां आए और भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर में ठहरे थे। भेड़ाघाट का नाम भृगु ऋषि के कारण पड़ा है। पंचवटी में अर्जुन प्रजाति के पांच वृक्ष होने के कारण इसका नाम पंचवटी पड़ा है। जानकार बताते हैं कि 64 योगिनी मंदिर के समीप भगवान शिव ने भी तपस्या की थी। 64 योगिनियां उनका प्रहरा देती थीं।
गौ-बच्छा घाट
नाम से स्पष्ट है कि यह घाट गाय और उसके बछड़े से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि प्राचीन काल में भगवान शिव ने यहां पर सिंह से एक गाय-बछड़े की रक्षा की थी। तभी से इस स्थान का नाम गौ-बच्छा घाट पड़ गया। इस घाट के समीप अनूठे झरने भी हैं। लोग परिवार सहित यहां पिकनिक मनाने भी जाते हैं।