scriptप्रकटोत्सव की पूर्व संध्या पर मां नर्मदा का किया शृंगार | Narmad poojan in jabalpur | Patrika News
जबलपुर

प्रकटोत्सव की पूर्व संध्या पर मां नर्मदा का किया शृंगार

संस्कारधानी में भक्त पहुंचे तटों पर, चुनरी अर्पित की, शिवपुत्री नर्मदा के प्रकटोत्सव पर भगवान श्रीराम व जाबालि ऋषि ने किया था पूजन

जबलपुरJan 28, 2023 / 06:19 pm

Sanjay Umrey

संस्कारधानी में भक्त पहुंचे तटों पर, चुनरी अर्पित की, शिवपुत्री नर्मदा के प्रकटोत्सव पर भगवान श्रीराम व जाबालि ऋषि ने किया था पूजन

संस्कारधानी में भक्त पहुंचे तटों पर, चुनरी अर्पित की, शिवपुत्री नर्मदा के प्रकटोत्सव पर भगवान श्रीराम व जाबालि ऋषि ने किया था पूजन

जबलपुर. नर्मदा प्रकटोत्सव की पूर्व संध्या पर श्रद्धालुओं ने मां नर्मदा का शृंगार किया। संस्कारधानी में बड़ी संख्या में श्रद्धालु नर्मदा तटों पर पहुंचे और पूजन किया। अलग अलग धार्मिक संगठनों ने मां नर्मदा को चुनरी अर्पित की। मां नर्मदा उमाशंकर चुनरी भक्त समिति की ओर से नर्मदा प्रकटोत्सव की पूर्व संध्या पर उमाघाट ग्वारीघाट में मां नर्मदा का 1100 फीट की चुनरी से शृंगार किया गया।
दंडी स्वामी प्यारे नंद, ज्ञानेश्वरी दीदी, मैत्री दीदी, स्वामी पगलानंद, स्वामी मुकुंददास, इंद्रभान, रामबहादुर, स्वामी चंद्रशेखरानंद, संपूर्णा दीदी, शिरोमणि दीदी, रोहित, रामेश्वर दास, संतोष शास्त्री सहित बड़ी खेरमाई ट्रस्ट के अध्यक्ष शरद अग्रवाल, योगेंद्र दुबे के नेतृत्व में आयोजन हुआ। संतों ने स्वच्छता के साथ नशा मुक्ति का संकल्प दिलाया। समिति के संरक्षक डॉ. सुधीर अग्रवाल, चुनरी समिति के अध्यक्ष जय किशन गुप्ता व कान्यकुब्ज वैश्य हलवाई महिला मंडल की बहनों ने विशेष परिधान पहनकर नर्मदा जी का आशीर्वाद लिया। अमर ङ्क्षसह ठाकुर, राकेश अहिरवार, सोनू सैनी, प्रमोद नागर, सुरेंद्र खरे, राजेश साहू, समीर पटेल, संदीप ठाकुर, मोनू सोनकर, सोनू पंडा उपस्थित थे।
तिलवाराघाट में श्रीराम मानस महिला मंडल संजीवनी नगर की ओर से मां नर्मदा प्रकटोत्सव की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को में माता नर्मदा को 151 फीट लम्बी चुनरी समर्पित की गई। मंडल अध्यक्ष संध्या दुबे ने बताया कि मां की आराधना के साथ चुनरी समर्पित की गई। इस अवसर पर सुमन राय, उमा सिसोदिया, अजय गढ़वाल, प्राची सिसोदिया, अनीता केवट, कल्पना तिवारी, साधना पांडे उपस्थित थीं।
संस्कारधानी में नर्मदा प्रकटोत्सव पर सबसे पहली चुनरी भगवान श्रीराम ने अर्पित की थी। महर्षि जाबालि ने प्रकटोत्सव पर पहली बार नर्मदा तट पर दीपदान किया था। इन सबकी स्मृति में दीपदान और चुनरी अर्पण की परिपाटी संस्कारधानी में पल्लवित हो रही है।
ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला बताते हैं कि भगवान राम चित्रकूट पहुंचे तो उन्हें शिवपुत्री मां नर्मदा के दर्शन की इच्छा हुई। वे सीता और लक्ष्मण के साथ यहां आए। श्रीराम ने यहां मां नर्मदा को चुनरी अर्पित कर रेत से शिवङ्क्षलग बनाया। स्वामी मुकुंददास ने बताया कि त्रेतायुग में भगवान राम की उत्तर से दक्षिण तक की यात्रा काल का वर्णन पुराणों में है। कोटि रुद्र संहिता में प्रमाण है कि गुप्तेश्वर महादेव रामेश्वरम् के उपलिंग स्वरूप हैं।
ऐतिहासिक है पान दरीबा का मंदिर
शहर में कल्चुरि शासकों की कई धरोहरें और स्मृतियां हैं। उसी वंश का शानदार नमूना कमानिया के पास पान दरीबा स्थित मक्रवाहिनी नर्मदा माता की मूर्ति भी है। इसे दुनिया की सबसे सुंदर नर्मदा प्रतिमा भी कहा जाता है। इसकी खासियत है कि इसे जिस और से देखो ऐसा प्रतीत होता है कि वे हमें ही देख रही हैं। इतिहासकार डॉ. आनंद ङ्क्षसह राणा बताते हैं कि कल्चुरी वंश के राजा कर्ण ने सन 1041 से सन 1072 तक शासन किया। उन्होंने ही मक्रवाहिनी प्रतिमा का निर्माण करवाया। 1860 के आसपास त्रिपुरी में यह मूर्ति निकली। जबलपुर के पानदरीबा में रहने वाले हल्कू हलवाई बेहद धार्मिक व्यक्ति थे। मूर्ति निकलने की बात उन्हें मालूम हुई। उन्होंने मूर्ति पानदरीबा की गली के मुहाने पर स्थापित किया। बाद में मंदिर बनवाया गया।
जाबालि ऋषि ने शुरू किया था दीपदान
नर्मदा के तट पर दीपदान की परम्परा महर्षि जाबालि ने शुरू की थी। तब से अब तक यह परम्परा पल्लवित होते आ रही है। संस्कारधानी निवासी नर्मदा प्रकटोत्सव पर सामूहिक रूप से व परिवार के साथ नर्मदा तटों पर दीपदान के लिए पहुंचते हैं। यह परम्परा अब उत्सव का रूप लेते जा रही है।
भागवताचार्य जनार्दन शुक्ला बताते हैं कि नर्मदा के किनारे दीपदान की परम्परा हजारों वर्षों से चली आ रही है। नर्मदा पुराण में इसका उल्लेख है कि यहां नर्मदा के तट पर तप करने वाले महर्षि दीपदान किया करते थे। शास्त्रों में उल्लेख है कि महर्षि जाबालि ने प्रकटोत्सव पर यहां सबसे पहले दीपदान किया था, तभी से यह परम्परा चली आ रही है।
तट पर ही दीपदान का महत्व
नर्मदा की जलधारा में दीपदान किया जाता है। लेकिन, विद्वानों का मत इसके विरुद्ध है। ज्योतिर्विद उदय कृृष्ण शास्त्री कहते हैं कि शास्त्रों में नर्मदा तट पर ही दीपदान का महत्व बताया गया है। दीपों को जलधार में न प्रवाहित कर नर्मदा मां के पूजन और आरती के बाद तट पर ही अर्पित कर देना चाहिए। प्राचीनकाल में ऋषि मुनि नर्मदा तट पर ही दीपदान करते थे।
प्रदूषण से बचाने के लिए हों उपाय
दीपदान का एक पहलू यह भी है कि नर्मदा की स्वच्छ व निर्मल जलधारा इससे प्रदूषित होती है। रादुविवि में प्रोफेसर व पर्यावरण विद डॉ. एसएस संधू कहते हैं कि दीप में प्रयुक्त किए जाने वाले तेल और घी जल को प्रदूषित कर सकते हैं। रुई की बाती भी जलीय जंतुओं के लिए हानिकारक हो सकती है। इसके लिए इको फ्रेंडली दीपक इस्तेमाल किए जाने चाहिए। तेल और घी की उतनी ही मात्रा प्रयुक्त की जानी चाहिए, जितनी बाती के साथ पूरी जल जाए। कपूर का उपयोग अधिक किया जा सकता है। यह जल कर उड़ जाता है।

Hindi News/ Jabalpur / प्रकटोत्सव की पूर्व संध्या पर मां नर्मदा का किया शृंगार

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो