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सुबह उठते ही जपे 3 शब्द का मंत्र, बड़े से बड़ा फकीर भी बनता है धनवान

locationजबलपुरPublished: Nov 19, 2018 02:55:48 pm

Submitted by:

Faiz

सुबह उठते ही जपे 3 शब्द का मंत्र, बड़े से बड़ा फकीर भी बनता है धनवान

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सुबह उठते ही जपे 3 शब्द का मंत्र, बड़े से बड़ा फकीर भी बनता है धनवान

जबलपुरः दुनिया में लगभग हर व्यक्ति यह अपेक्षा रखता है कि, वह इतना धनवान हो जाए कि, अपने लिए हर सुख सुविधा को खरीद सके। लेकिन हर व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि, उसे अपने जीवन में हर सुख सुविधा मिले। कई लोग अपने जीवन में कड़ी मेहनत भी करते हैं, बावजूद इसके उन्हें अपने जीवन में कोई सुख नहीं मिल पाता। यह सब भाग्य पर निर्भर करता है, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में लिखी बातें हमारे भाग्य को भी बदल सकती हैं। उनमें बताए गए मंत्र व्यक्ति की हर समस्या का समाधान हैं। इसी समस्या से जूझ रहे लोगों का निवारण कर रहे हैं, मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध ज्योतिष पंडित श्यामनारायण व्यास। उन्होंने हमें ज्योतिष शास्त्र के हवाले से कुछ ऐसे चमत्कारी मंत्र बताए हैं, जिसके जाप से व्यक्ति के जीवन में घटित सारे कष्टों का नाश हो जाएगा। पंडित व्यास के अनुसार इन मंत्रों के जाप से सुख-शान्ति के साथ-साथ स्वास्थ में भी सुधार आने लगता है। आपको बता दें कि इन मंत्र के जाप करते समय शांत चित्त रहने का प्रयास करने की आवश्यकता होती है। अगर आप भी ऐसी ही किसी विपदा से जूझ रहे हैं तो तुरंत इन मंत्रों का जाप करेंं।

पंडित व्यास ने ज्योतिष शास्त्र में लिखित इन मंत्रों को बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी बताया है। उन्होंने कहा कि, इन मंत्रों के जाप से मनचाही वस्तु प्राप्त की जा सकती है। हम आपको जिन मंत्रों के बारे में बताने जा रहे हैं, वैसे तो अगर आप इन मंत्रों का जाप सुबह उठकर करते हैं, तो यह अति उत्तम है, लेकिन इसे दिन रात कभी भी जपा जा सकता है। मंत्र कुछ इस प्रकार है…।

1-सुबह उठते ही अपनी दोनों हथेलियां देखकर ये मंत्र बोलें (कर दर्शन मंत्र)

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वति।

करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ।।

2-धरती पर पैर रखने से पहले ये मंत्र बोलें

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।

विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥

3-भोजन से पहले ये मंत्र बोलें

ॐ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै ।

तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे।

ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिखां देहि च पार्वति।।

ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।

ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।

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