कई प्रकार के आते हैं खर्चें
अभी एक तोप की फायरिंग करवाने में अनुमानित तौर पर7 से 8 लाख रुपए का खर्च आता है। सबसे बड़ा व्यय परिवहन पर आता है।इसी तरह तोप ले जाने और वापिस आने में समय की खपत बहुत लगती थी। अभी इसे ओडिसा के बालासोर और राजस्थान के पोकरण फायरिंग रेंज ले जाया जाता है। इसके लिए ट्राला का इंतजाम किया जाता है। फिर एक टीम फायरिंग रेंज भेजी जाती है। उन्हें परिवहन भत्ता के अलावा दूसरे भत्ते देने पड़ते हैं। रेंज में पिट का किराया अलग देना पड़ता है। अब यह सारे खर्चें बच सकेंगे। एलपीआर में केवल बट का किराया देना पडे़गा। वहीं कर्मचारी यही से जाएंगे।
डीजीक्यूए ने लगा रखी थी रोक
डायरेक्टर जनरल ऑफ क्वालिटी एश्योरेंस (डीजीक्यूए) ने एलपीआर में लार्ज कैलीबर की तोप के परीक्षण पर रोक लगा दी थी। इसकी वजह यह थी कि टारगेट के लिए जो पिट बने थे, वह क्षतिग्रस्त हो रहे थे। क्योंकि धनुष तोप का गोला बेहद शक्तिशाली है। ऐसे में पिट को भारी नुकसान हुआ। बाद में तोप को इटारसी के अलावा पोकरण और बालासोर में फायरिंग के लिए कह दिया गया था। इस कारण जीसीएफ की मुसीबत बढ़ गई थी। क्योंकि उसे फिर दूर जाकर परीक्षण में खर्च लगने लगा था।
पहाड़ी में जीरो डिग्री पर दागा गोला
तोप की फायरिंग के लिए एलपीआर में मूल फायरिंग स्थल से थोड़ा आगे लक्ष्य साधने का स्थान बनाया गया है। यहां से जीरो डिग्री पर तोप से गोला दागा जाता है। अब पहाड़ी पर प्राकृतिक बट तैयार की गई है। ऐसे में कोई नुकसान भी नहीं होता है। ज्ञात हो कि तोप को सेना को सौंपने के पहले इंटरनल फायरिंग की जाती है। एलपीआर में फाइनल असेंबली के बाद गोला दागा जाता है। इससे पहले इटारसी की ताकू रेंज में बैरल, मजल और रिक्वाइल सिस्टम की टेस्टिंग हो चुकी होती है।
धनुष तोप की फायरिंग एलपीआर में पुन: शुरू हो गई है। सात मार्च को तोप का सफल परीक्षण किया गया। अब निरंतर यह प्रक्रिया यहां पूरी की जाएगी। इसके लिए प्राकृतिक बट तैयार किया गया है।
ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता, कमांडेंट, एलपीआर खमरिया