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जबलपुर

Shankaracharya swami Swaroopanand Saraswati ने इस मंदिर के निर्माण का किया विरोध

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने विचारों की लड़ाई विचारों से ही लडऩे पर दिया जोर, गोडसे मंदिर बनाए जाने को कहा मूर्खतापूर्ण कृत्य

जबलपुरNov 21, 2017 / 11:14 am

deepak deewan

Godse temple: swami Swaroopanandji said senseless acts

Godse temple: swami Swaroopanandji said senseless acts

जबलपुर। हिंदू महासभा ने गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का मंदिर बनाने की बात कही है। इस बात पर देशभर में तीव्र प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गई हैं। गोडसे का मंदिर बनाने की कोशिश का विशेषकर कांग्रेस जबर्दस्त विरोध कर रही है और इसके लिए देशभर में प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं। अब ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी नाथूराम गोडसे का मंदिर बनाने की बात पर अहम बयान दिया है। धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने जबलपुर आए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने इस विवादित मुद्दे पर स्पष्ट राय व्यक्त करते हुए इस कोशिश का विरोध किया है।

गोडसे का मंदिर बनाना मूर्खतापूर्ण कृत्य
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने नाथूराम गोडसे का मंदिर बनाए जाने की बात पर बेहद तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त किए। उन्होंने गोडसे के मंदिर निर्माण की कोशिश को बेहद मूर्खतापूर्ण कृत्य करार दिया। उन्होंने नाथूराम गोडसे के मंदिर निर्माण को भारतीय संस्कृति के विपरीत भी बताया है। सनातन हिंदू संस्कृति और मूल्यों की बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति में युद्ध के भी बड़े स्पष्ट नियम रहे हैं। सनातन संस्कृति में तो किसी भी स्थिति में नि:शस्त्र को मारने की मनाही की गई है, नि:शस्त्र पर हमला करने या उसको मारने का हमारे यहां विधान नहीं है।

मारपीट नहीं, शास्त्रार्थ करेंं
उन्होंने विचार की लड़ाई विचार से ही लडऩे की भी बात कही। शंकराचार्य ने इस बात पर क्षोभ जताया कि हिंदुत्व के नाम पर अपने विरोधी के विचारों को दबाने के लिए विचार की लड़ाई न लडक़र उस पर प्राणघातक आक्रमण करने की नयी प्रणाली लाई जा रही है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि हमारे यहां हमेशा ही मत-मतांतर रहे हैं। चार्वाक, जैन, बौद्घ, वैदिक आदि भिन्न-भिन्न मत रहे हैं, लेकिन उनके बीच कभी हिंसा नहीं हुई। सभी मत-मतांतरों के समर्थकों के बीच शास्त्रार्थ हुआ, विचारों की लड़ाई हुई। इसमें मारपीट का स्थान कभी नहीं रहा।

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