द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की तपोस्थली परमहंसी गंगा आश्रम के नामकरण की एक रोचक कहानी है। राज राजेश्वरी मां त्रिपुर सुंदरी के भव्य मंदिर के नीचे आश्रम में लोग जिस कुंड और झरने को बहते हुए देखते हैं वह यहां आश्रम बनने के बाद अस्तित्व में आया।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने बताया कि एक दिन उनके मन में यह बात आई कि अधिकांश सिद्ध संतों के आश्रम गंगा किनारे होते हैं और यहां तो गंगा नहीं हैं जिसके कुछ देर बाद जब वह आश्रम में भ्रमण कर रहे थे तो उन्हें एक स्थान पर भूमि गीली नजर आई जिस पर उन्होंने वहां जिज्ञासावश हाथ से खुदाई की तो वहां जलधारा नजर आई जिसके बाद उन्होंने वहां कुंड का निर्माण कराया और स्थान का नाम परमहंसी गंगा आश्रम रखा। कुंड के आगे तीन और कुंड बने हैं जिसके बाद लघु सरोवरों का निर्माण कराया गया है। बारिश के दिनों में यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य की वजह से और मनोरम हो जाता है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने बताया कि स्थान पर पहले से बेल के वृक्ष थे और यहां अपने आप उगते थे जो दैवीय स्थल का प्रमाण देते हैं।
देव प्रबोधनी एकादशी पर कर चाहिए दीपदान
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने बताया कि देव प्रबोधनी एकादशी पर दीपदान जरूर करना चाहिए इससे जीवन का अंधकार छट जाता है और प्रकाश मार्ग खुल जाता है।