यह है कहानी
मीर बुलंद अली खां की आयु 75 साल है। अपनी उम्र छुपाने के लिए वे तरह-तरह के जतन करते है। इसी के चलते वे दो तवायफों हीरा और गुलाब का सहारा लेते हैं । जब वे खां साहब की तारीफ करती हैं तो खुद को जवान समझ बैठते हैं। खॉ साहब की नजर उनके ही मोहल्ले में रहने वाली सुरैया पर पड़ती है। वे इतने दीवाने हो जाते हैं कि उससे शादी करने की सोचने लगते हैं। मजे की बात यह होती है कि इसी लड़की से उनका बेटा भी प्यार करता है। लड़की के माता-पिता को अपनी बेटी के प्रेम के बारे में पता चलता है तो वे दोनों के प्यार को स्वीकार कर लेते हैं। नाटक में उस समय नया मोड़ आता है जब सुरैया के माता-पिता अपनी बेटी की शादी की बात मीर बुलंद के बेटे के लिए करते हैं और खां साहब खुद के लिए आया रिश्ता समझकर हां में हां मिलाते जाते हैं।
अभिनय से नाटक् को चार चांद लगा दिया
इतना ही नहीं, अपने बेटे और सुरैया की मोहब्बत का पता चल जाने पर भी खां साहब सुरैया के प्रेम से बरी नहीं हो पाते। नाटक के अंत में मीर बुलंद खां के बेटे ताबिश की शादी सुरैया से हो जाती है। इमरान राशिद, मुजम्मिल कुरैशी, बरखा सक्सेना, आकृति सिंह, निशा धर, लोकेश राय, हरप्रीत सिंह, तषा काले, मो. खालिक, वरुण कुमार ने अपने अभिनय से नाटक को चार चांद लगा दिए। संगीत निश्चल शर्मा का था। विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने बताया, समारोह में सात श्रेष्ठ नाटकों का मंचन किया गया। इस दौरान वसंत काशीकर, बीबी ब्योहार, चित्रकार हरि भटनागर मौजूद थे।