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एमपी के इस शहर में मिला दुनिया का नौंवा अजूबा, देखने वाले रह गए दंग

locationजबलपुरPublished: Sep 12, 2018 11:52:48 am

Submitted by:

Lalit kostha

एमपी के इस शहर में मिला दुनिया का नौंवा अजूबा, देखने वाले रह गए दंग

9th wonder of the world found in india

9th wonder of the world found in india

जबलपुर। बैलेंसिंग रॉक और शारदा मंदिर तक पहुंचना अब आसान होगा। मार्ग को कब्जा मुक्त कराने के लिए मंगलवार को ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई। इस दौरान 12 अवैध मकान तोड़े गए। हाईकोर्ट के आदेश पर जिला प्रशासन व नगर निगम की संयुक्त टीम ने बड़ी कार्रवाई की। सडक़ चौड़ीकरण के लिए मार्ग से लगी तक्षशिक्षा कॉलेज की लगभग 500 मीटर लंबी बाउंड्रीवॉल को भी तोड़ा गया। पुलिस बल की मौजूदगी में की गई कार्रवाई के दौरान मौके पर बड़ी संख्या में लोग इक_े हो गए थे। मदनमहल दरगाह के समीप भी अवैध तरीके से बनाए गए भवन को हटाने की कार्रवाई की गई। इस निर्माण के कारण मार्ग अवरुद्ध हो रहा था।

वैसे आपको जानकर ये हैरानी होगी कि जिस तरह से यह पत्थर सदियों से टिका है, वह किसी अजूबे से कम नहीं है। लोग इसे दुनिया का नौंवा अजूबा भी कहते हैं। जबलपुर आने वाले देशी विदेश सैलानियों की पहली पसंद बैलेंसिंग रॉक देखना होता है। इसका बैलेंस ऐसा है कि तेज भूकंप भी इसे डिगा नहीं सका है।

एक लाख साल में बनती है चट्टान
पुरातत्वविद राजकुमार गुप्ता के अनुसार ग्रेनाइट की चट्टान बनने में लगभग एक लाख वर्ष लगते हैं। तब कहीं जाकर एक चट्टान बनकर तैयार होती है। मदन महल पहाड़ी के लिए भूगर्भ शास्त्रियों की गणना के अनुसार बैलेंसिंग रॉक लगभग पांच करोड़ साल पुरानी है। जिसने प्राकृतिक भूकंप के हजारों झटके खाए हैं, लेकिन वह हिल नहीं सकी है।

Balancing Rocks

चुम्बकीय आकर्षण या गुरुत्वाकर्षण
वैज्ञानिक पीआर देव का मानना है कि इतनी वजनी चट्टान का लगभग 10 इंच की टिप पर दूसरी चट्टान का टिका होना सम्भवत: चुम्बकीय आकर्षण या फिर गुरुत्वाकर्षण के कारण ही सम्भव है।
फैक्ट फाइल
01 फीट की परिधि के प्वाइंट पर अद्भुत संतुलन
40 टन भारी है ऊपरी शिला
6.2 रिएक्टर स्के ल का भूकम्प, 22 मई 1997 को नई डिगा सका संतुलन
05 हजार मकान इस भूकम्प में हो गए थे बर्बाद, 39 लोगों की हुई थी मौत
1/2 एकड़ रकबे में मौजूद है बैलेसिंग रॉक परिसर
05 करोड़ साल पुरानी चट्टान (भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार)
महज एक बोर्ड
प्रशासन और शासकीय निर्माण एजेंसियों ने इस स्थल के संरक्षण या विकास के लिए कोई प्रयास नहीं किया। 2010 में तत्कालीन सम्भागायुक्त प्रभात पाराशर के निर्देश पर इस स्थल की पहचान के लिए नाम का सिर्फ बोर्ड लगा दिया गया था।
नहीं ले रहे सुध
कब्जों व अतिक्रमणों के चलते पर्यटकों को बैलेंसिंग रॉक ढूंढे़ नहीं मिलती। मुख्य मार्ग से एक किमी दूर विश्व विरासत तक पहुंचने के लिए न तो दिशा हैं और न संकेतक। कब्जे के कारण पहुंच मार्ग भी संकरा हो गया है। तलाशते, पूछते किसी तहत पर्यटक यहां तक पहुंचते हैं, तो दुर्दशा देखकर हैरत में पड़ जाते हैं।
आधा एकड़ जमीन दर्ज
राजस्व रिकॉर्ड में बैलेंसिंग रॉक के नाम से लगभग आधा एकड़ जमीन दर्ज है। ये दर्शनीय स्थल तीन ओर से पत्थर की पुरानी बाउंड्रीवॉल से घिरा है। प्रवेश मार्ग की ओर बड़ी चट्टानें हैं। जानकारों का कहना है कि इसके विकास और फेंसिंग की जरूरत है। यहां सुविधाएं विकसित कर दी जाएं, तो यह स्थल शासन के लिए आय का जरिया बन सकता है।

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