डायरेक्टर राजेश पाराशर के साथ एमएस नरवरिया के समन्वयन में हरीश चौधरी एवं रितेश गिरी ने प्रयोग के यंत्रों का संचालन करते हुये भारत द्वारा जल्दी ही अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले गगनयान के रोबोट व्योममित्र को सूर्य तिलक करके भारतीय वैज्ञानिक सफलता को भी प्रयोग के माध्यम से प्रदर्शित किया। पाराशर ने बताया कि प्रकाश किरणें एक सीधी रेखा में चलते हुये किसी चेहरा देखने वाले समतल दर्पण से परावर्तित हो जाती हैं। इन दर्पणों की मदद से किरणों का मार्ग बदला जा सकता है। इसी सिद्धांत का प्रयोग करते हुये स्थानीय सूर्य किरण यंत्र तैयार किया है। चूंकि पृथ्वी लगातार सूर्य की परिक्रमा करती रहती है, इसलिये यह सूर्य तिलक लगातार स्थिर नहीं रहता। अगर इसे लगातार बनाये रखना है तो छत पर लगे दर्पण की दिशा लगातार बदलते रहना होगी।
सूर्यउदय और अस्त होने तक कभी भी बनाया जा सकता है तिलक- राजेश पाराशर ने बताया कि इस यंत्र की मदद से सूर्य के उदित होने से अस्त होने तक कभी भी सूर्य तिलक बनाया जा सकता है। इसके लिये सिर्फ आकाश में चमकता सूर्य होना जरूरी है। बादल होने पर यह तिलक नहीं बन सकेगा।
पाराशर ने आस्था में विज्ञान के योगदान की चर्चा करते हुये बताया कि किसी निर्माणाधीन मंदिर या मकान में पहले से तय करके सूर्यतिलक आपके वांछित स्थान पर बनाया जा सकता है। कैसे काम करता है यह यंत्र-
इस यंत्र में एक पाईप में दो समतल दर्पण लगे हैं, वे किरणों को किसी भवन की छत से नीचे की मंजिल तक लेकर आते हैं। छत पर लगे दर्पण में किरणों को प्रवेश कराने के लिये तीसरा दर्पण लगा है, जिसका कोण सूर्य की स्थिति के अनुसार बदल कर सूर्य प्रकाश को पाईप के जरिये नीचे मंजिल तक पहुंचाया जाता है। नीचे पहुंचे प्रकाश की दिशा इस प्रकार सेट की जाती है, कि वह किसी मूर्ति पर अथवा चाहे गये स्थान पर जाकर सूर्य तिलक के रूप में चमके।