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रिटायर्ड डीपीजी ने दान की पूरे जीवनभर की कमाई

locationइटारसीPublished: Dec 06, 2018 09:43:04 pm

Submitted by:

krishna rajput

तीन करोड़ से बनेगा दो सौ छात्राओं के लिए भवनग्राम धुरपन में सेवा भारती के जनजाति छात्रावास का भूमिपूजन

Buildings for two hundred girls will be made from three crore, seva bharti, Retired DPG, Asha Mahendra Shukla, dhurpan, itarsi

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इटारसी। एक रिटायर्ड डीजीपी ने मिसाल पेश की है। रिटायर्ड डीजीपी ने ७५ वें जन्मदिन पर उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई ७५ लाख रुपए सेवा भारती को दान कर दिया। सेवा भारती द्वारा ने धुरपन में बनाए जा रहे छात्रावास को उन्हीं का नाम आशा महेंद्र शुक्ल दिया है।
ग्राम धुरपन में सेवा भारती मध्य भारत प्रांत के प्रकल्प आशा महेन्द्र शुक्ल जनजाति छात्रावास का आज भूमिपूजन कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस छात्रावास का निर्माण करीब सवा दो एकड़ में तीन करोड़ रुपए की लागत से होगा। छात्रावास निर्माण के लिए ग्राम धरमकुंडी के आशा महेन्द्र शुक्ल ने 75 लाख रुपए दान दिए हैं। गुरूवार भूमिपूजन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि गंगोत्रीधाम उत्तराखंड के स्वामी वियोगानंद महाराज थे। मुख्य यजमान सेवा भारती मध्य भारत प्रांत के उपाध्यक्ष, सेवानिवृत्त डीजीपी महेन्द्र शुक्ल और उनकी पत्नी आशा महेन्द्र शुक्ल, राजकुमार जैन, विमल त्यागी, सुरेन्द्र सिंह, सचिव गुरुप्रीत सिंघ सोनू बिन्द्रा, प्रकाश ताम्रकार, योगी अग्रवाल, कल्पेश अग्रवाल, मनोज राय सहित संघ और सेवा भारती से जुड़े अनेक अतिथि, पूर्व मंत्री विजय दुबे काकूभाई, अभय दुबे मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विभाग संघ चालक धन्नालाल दोगने ने की और मुख्य वक्ता गोरेलाल बारछे थे।
मुख्य अतिथि स्वामी वियोगानंद ने कहा कि जीवन में धन का महत्व नहीं द्रव्य का महत्व है। धन गाड़कर, छिपाकर रखा जा सकता है। जबकि यह होना चाहिए कि द्रव्य में धन सेवा के प्रवाह में बहता रहे। उन्होंने कहा कि सेवा दो अक्षरों से बना शब्द मात्र नहीं है, बल्कि काफी गरिमामय होती है। जिसके जीवन में मानवता भरी रहती है, उसे भगवान भी दर्शन करने खोजते रहते हैं। सेवा साधन भी है और सिद्धि भी है, इसके द्वारा हम अंतर्मन की सारी अशुद्धि दूर कर सकते हैं। इससे हमारा अंत:करण शुद्ध होता है।
दान के पत्नी ने किया प्रेरित
दानदाता महेन्द्र शुक्ल ने कहा कि माता पिता के संस्कार और नैतिक मूल्य भी उन्होंने अपनी पुलिस सेवा में साथ लेकर चले हैं। सेवानिवृत्त होने पर जब पत्नी इस तरह का विचार सामने रखा तो मन में आया कि सेवा के प्रमाणित कार्य करने वाली संस्था को यह पैसा देना चाहिए और सेवा भारती का ख्याल आया। उन्होंने सेवा भारती के मातृछाया और आनंदधाम जैसे प्रकल्पों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि संस्था शिक्षा में पिछड़े लोगों के लिए काम करती है।
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