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आर्थिक मंदी के बीच पारले जी को 15 फीसदी का मुनाफा, दो महीने पहले की थी छंटनी की बात

Published: Oct 16, 2019 01:41:30 pm

Submitted by:

Saurabh Sharma

पारले जी का साल 2018-19 में शुद्ध मुनाफा 15.2 फीसदी बढ़ा
कंपनी की आमदनी 6.4 फीसदी का इजाफे के साथ 9,030 करोड़ रुपए हुई
2017-18 में कंपनी का आमदनी का आंकड़ा था 8,780 करोड़ रुपए

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नई दिल्ली। करीब दो महीने पहले देश की सबसे बड़ी बिस्कुट बनाने वाली कंपनी पारले ने आर्थिक मंदी का हवाला देते हुए 10000 लोगों की छंटने की बात कही थी। मीडिया में इस बात को तुल मिला था मिला था कि देश में लोगों के पांच रुपए का पारले जी बिस्किट खरीदने तक का रुपया नहीं बचा है। सोशल मीडिया में भी यह बात काफी चर्चा में रही थी। अब जब कंपनी के कमाई के आंकड़े आए हैं तो वो आर्थिक मंदी के बिल्कुल विपरीत है। 2018-19 में कंपनी को 15 फीसदी का मुनाफा हुआ है। जिसकी वजह कंपनी की आमदनी में 6 फीसदी से ज्यादा इजाफा हुआ है और आंकड़ा 9 हजार करोड़ रुपए से पार चला गया है।

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पारले जी को 15 फीसदी का मुनाफा
पारले ग्रुप की पारले जी बिस्किट्स बनाने वाली यूनिट को 2018-19 में 15 फीसदी का मुनाफा हुआ है। खास बात तो ये है कि नुकसान की आशंका के चलते बिस्किट बनाने वाले कंपनी ने जीएसटी कम करने की मांग की थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2018-19 में पारले बिस्किट्स का नेट प्रोफिट 410 करोड़ रुपए रहा जो 2017-18 में 355 करोड़ रुपए था। कंपनी की आमदनी में भी 6.4 फीसदी का इजाफा हुआ है जो 8,780 करोड़ रुपए से बढ़कर 9,030 करोड़ रुपए गई है। आपको बता दें कि पारले की सेल्स 10,000 करोड़ रुपए से ज्यादा है। कंपनी 10 प्लांट ऑपरेट करती है और एक लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। वहीं पारले की 125 थर्ड पार्टी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हैं।

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10000 की छंटनी की कही थी बात
अगस्त के महीने में पारले बिस्किट्स की ओर से कहा गया था कि अगर अगर सरकार जीएसटी में कटौती नहीं करती है तो कंपनी को फैक्टरियों में काम करने वाले करीब 10,000 लोगों को निकालना पड़ेगा। कंपनी ने कहा था कि जीएसटी लागू होने से पहले 100 रुपए प्रति किलो से कम कीमत वाले बिस्किट पर 12 फीसदी टैक्स था। कंपनियों ने उम्मीद लगाई थी कि प्रीमियम बिस्किट पर 12 फीसदी और सस्ते बिस्किट पर 5 फीसदी त्रस्ञ्ज का प्रावधान किया जाएगा। जीएसटी लागू होने के बाद सभी तरह के बिस्किट पर 18 फीसदी का दर लगाया गया। जिसकी वजह से कंपनियों को दाम बढ़ाने पड़े। बाद में कंपनियों की सेल्स में गिरावट आ गई।

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