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चिकित्सा मंत्री को अपने डॉक्टरों पर भरोसा नहीं, दिल्ली पहुंची इलाज कराने

locationइंदौरPublished: Jan 16, 2019 11:00:19 am

दिल्ली पहुंची इलाज कराने

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चिकित्सा मंत्री को अपने डॉक्टरों पर भरोसा नहीं, दिल्ली पहुंची इलाज कराने

इंदौर. प्रदेश की चिकित्सा शिक्षा मंत्री विजयलक्ष्मी साधौ के कंधे में फ्रैक्चर के बाद उन्हें जांच के लिए पिछले दिनों निजी अस्पताल ले जाया गया। वहां साधौ की इच्छा पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आगे के इलाज के लिए स्टेट प्लेन से ‘एयर लिफ्ट’ कर उन्हें दिल्ली एम्स भिजवाया। जबकि, प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एमवाय इंदौर में है। भोपाल में भी एम्स है।
सवाल यह है, जब मंत्री को ही अपने ही विभाग के एमवायएच पर विश्वास नहीं है तो मरीजों को बेहतर से बेहतर इलाज के दावे किस आधार पर सरकार और मंत्रियों द्वारा किए जाते हैं? इस अस्पताल को बेहतर बनाने के लिए सरकारी मदद के साथ ही शहर के दानदाताओं ने भी मदद की है। मंत्री साधौ का जिस निजी अस्पताल के ट्रामा सेंटर में इलाज शुरू किया गया, वहां के मुकाबले एमवाय अस्पताल का ट्रामा सेंटर कई गुना बड़ा और ज्यादा सुविधाओं से लैस है। अस्पताल के रिनोवेशन और संसाधन जुटाने के लिए 2014 में शुरू हुए कायाकल्प अभियान में करीब 15 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
एक ही साल में जुटाए 1.10 करोड़ रुपए
एमवायएच में कई संस्थाएं और दानदाता सक्रिय रहते हैं। परपीड़ाहर वेलफेयर सोसायटी ने 2017 में उपकरणों के लिए दानदाताओं से एक करोड़ 10 लाख रुपए जमा कर खर्च किए। संस्था अध्यक्ष राधेश्याम साबू ने बताया, इनमें से 33 लाख सिर्फ आधुनिक मशीनों के लिए दिए गए। संस्था 12 साल से यहां काम कर रही है। चाचा नेहरू अस्पताल में थैलेसीमिया-डे केयर सेंटर विजय पारिख और पवन सिंघानिया ने तैयार कराया। वहीं, बोनमैरो ट्रांसप्लांट सेंटर के लिए कई संस्थाओं ने मदद की।
इन्होंने दिया दान
अग्रवाल समाज ने फाउलर बेड, एसबीआई ने 20 लाख के उपकरण, पीडी अग्रवाल ग्रुप ने परिसर में टू-लेन सडक़, पारमार्थिक ट्रस्ट ने आरओ प्लांट, नर्स और डॉक्टरों के गाउन दिए। उद्योगपति भरत कुमार मोदी की ओर से 11 लाख दान दिए गए। आकस्मिक चिकित्सा विभाग की नई इमारत के लिए बीसीसीएम और क्रेडाई की ओर से 60 लाख की लागत से निर्माण कराया गया। डेढ़ करोड़ की लागत से उपकरण लगाए।
क्या गरीब मरीजों के लिए ही है एमवाय?
एमवाय अस्पताल प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल 1000 बिस्तर की क्षमता के कारण कहा जाता है। यहां की आईपीडी में 1500 से ज्यादा मरीज भर्ती रहते हैं। अव्यवस्थाओं के लिए यह हमेशा चर्चा में रहता है। आधुनिक सुविधाओं के बावजूद यहां अधिकतर गरीब मरीज ही पहुंचते हैं। जांचें और डॉक्टरों के कंसल्ट के लिए कई प्रभावशील लोगों का आना-जाना रहता है पर कोई यहां रुककर इलाज नहीं कराना चाहता। आम मरीजों को पेड सर्विस देने की कई कोशिश की पर योजना कागज पर ही दम तोड़ती नजर आई।
सभी पेड योजनाओं ने तोड़ा दम
– अस्पताल में शाम को डॉक्टर्स की पेड ओपीडी लगाने की योजना बनाई गई। डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस छोड़ यहां आने को तैयार नहीं है। नॉन प्रैक्टिस डॉक्टरों को पैसे देकर इलाज कराने वाले मरीजों के पहुंचने की उम्मीद भी कम।
– ओपीडी में पेड हेल्थ चेकअप सेंटर बनाने की योजना बनाई गई, जिसमें बाजार से काफी कम दर पर चेकअप पैकेज देने की बात कही गई थी।
– अस्पताल की ओटी 24 घंटे चालू रखने के लिए भी रात के वक्त नाम मात्र की दर पर ऑपरेशन करने की योजना करीब एक साल पहले बनाई गई थी।
– कायाकल्प योजना में निजी अस्पताल की तर्ज पर 25 प्राइवेट रूम तैयार किए गए। 750 रुपए किराया तय किया गया था, मगर कोई मरीज यहां रुकने को तैयार नहीं हुआ।

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