बम ने कहा कि 23 मार्च को मेरा टिकट हुआ, मैं 24 मार्च को पहली बार गांधी भवन पहुंचा, लेकिन वहां कितने लोग आए। लोकसभा का चुनाव आठ विधानसभा, 2600 बूथों, नीति और पार्टी संगठन व कार्यकर्ताओं का होता है, लेकिन सीरीज ऑफ एक्शन चल रही थी। इसे देख तय किया कि नामांकन वापस लेना चाहिए, क्योंकि असहयोग किया जा रहा था। मैंने प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी को भी इसकी जानकारी दी थी।
नामांकन भरने के दिन मेरे पास कोई कार्यक्रम नहीं था। अगले दिन भी वही स्थिति थी। तीसरे दिन जनसंपर्क कैंसिल कर दिया गया। 27 अप्रेल को दो वार्ड में बैठक हुई और अगले दिन दो कार्यक्रम मैंने ही आर्गनाइज किए। 28 की रात को बताया कि 29 को जनसंपर्क कार्यक्रम कैंसिल हो गया है। ये पांच दिन का हिसाब है। लोग मुझसे पूछते हैं कि अचानक क्या हो गया? नामांकन वापस लेने के दिन भी मैं सुबह 5.30 बजे मंडी में प्रचार करने गया था।
लगातार जनसंपर्क कार्यक्रम निरस्त हो रहा था तो मैं क्या करता? चुनाव में प्रत्याशी का डेली शेड्यूल महत्वपूर्ण होता है, लेकिन रोज बदल जाता था या कैंसिल हो जाता था। पार्टी में अनुशासन से को-ऑर्डिनेशन व सपोर्ट सिस्टम होना चाहिए। 29 तारीख को मुझे लगा कि चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। जो मेरे लिए काम कर रहे थे, वे बाद में ठगा सा महसूस करते। महत्व व्यक्ति का नहीं, सिस्टम-अनुशासन और सपोर्ट का होता है।