लम्पट
यह एक ऐसे तिलकधारी की कहानी जो पॉलिटिकल साइंस में एमए होने के बावजूद भी नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहा है। अंत में वह सबसे ज्यादा संवेदनशील मुद्दे धर्म को ही अपना रोजगार और अपने कमाई का साधन बना लेता है। अपनी एक धार्मिक संस्था भी बना लेता है जिसके खाते में चंदे के नाम पर लाखों रुपए जमा होते हैं। यह नाटक कालेधन, देश की अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को गंभीरता के साथ उठाता है। मंच पर ऋषि दाधीच ने सफल अभिनय किया। तपन शर्मा गंभीर मुद्दों को सार्थक रूप से दर्शकों तक पहुंचाने में सफल रहे। संगीत कनक अवस्थी का था।
प्रमुख संवाद
-भला हो हमारी दोहरी अर्थव्यस्था का जो पूरे देश की तरह हमारे नगर में भी काले धन की मौजूदगी दर्ज करती है और भला हो हमारी नीतियों का जो मुझ जैसे लम्पटों की कमी नहीं रहने देती।