scriptकम्प्यूटर पर अकाउंट, फिर भी लाल बही का कर रहे पूजन | diwali special story for bahi khate and traditional culture | Patrika News
इंदौर

कम्प्यूटर पर अकाउंट, फिर भी लाल बही का कर रहे पूजन

20 साल में व्यापार का हिसाब-किताब कम्प्यूटर पर आ गया। अब जीएसटी के बाद कम्प्यूटर पर ही कारोबार करना होगा…

इंदौरOct 20, 2017 / 11:34 am

अर्जुन रिछारिया

diwali special,
इंदौर. २० साल में व्यापार का हिसाब-किताब कम्प्यूटर पर आ गया। अब जीएसटी के बाद कम्प्यूटर पर ही कारोबार करना होगा। इसके बाद भी पुष्य नक्षत्र के शुभ मुहूर्त पर बसना में सम्मान के साथ चौपड़ को माथे पर रखकर कारोबारी दुकान पर शान से ले जाने की परंपरा बनी हुई हैं। हालांकि इनके पैटर्न और आकार बदल गए, लेकिन हिसाब-किताब की लाल बही में सौ बोला और एक लिखा की कहावत का पालन कर रहे हैं।
दरअसल, देश में कारोबार का हिसाब-किताब बही-खातों में रखने का चलन है। कम्प्यूटर अकाउंटिंग के बाद इसका नजारा बदल गया। सारे कारोबार का हिसाब कम्प्यूटर पर शिफ्ट होने लगा है। जीएसटी के बाद तो कारोबारी को हिसाब-किताब कम्प्यूटर से ही करना होगा। बदलाव के इस दौर को व्यापारी स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन बहीखातों की परंपरा से भी पीढ़ी को अवगत कराना नहीं भूल रहे।
१० सल की बही, ८ सल का खाता
कागज में सल के आधार पर बहीखाते का निर्धारण किया जाता है। १० सल की किताब को बही और ८ सल की किताब को खाता कहा जाता है। इसके लिखने का तरीका भी विशेष होता है। अब इन्हें कॉपी और रजिस्टर साइज में बनाया जाता है।
बसना में सिर पर ले जाते हैं
व्यापारी इसका ऑर्डर गणेश चतुर्थी के साथ ही दे देते हैं। पुष्य नक्षत्र में बसना (लाल कपड़े) में सभी किताबों का बस्ता बनाया जाता है। इसमें बही-खाता, रजिस्टर, डायरी, कलम, बर्रु और दवात का अपना महत्व होता है। व्यापारी इन सभी को एक साथ रखकर सम्मानपूर्वक सिर पर रखकर ले जाते हैं। दीपावली के दिन पूजन होता है। इसके बाद इनका उपयोग शुरू किया जाता है।
१९४२ से बाजार में है हमारी पेढ़ी
शहर में बही-खाते की फर्म कागदी राजेंद्रकुमार लुणकरण जैन के संजय जैन ने बताया, कम्प्यूटर आए २० साल हो गए, लेकिन आज भी कारोबारी पुष्य नक्षत्र के शुभ मौके पर इसे खरीदते हैं। हमारी पेढ़ी १९४२ से बाजार में है। हम बहीखाते बेचते ही नहीं हैं, बनाते भी हैं। ८-१० कारोबारी इस काम को कर रहे हैं। इंदौर में हर साल ५ से ७ करोड़ का कारोबार होता है।
७२ साल भी बना रहे हाथों से
७२ साल से शहर में बही-खाते बना रही फर्म चोकलिया ब्रदर्स एंड कंपनी के नरेन्द्र चोकलिया आज भी हाथों से इन्हें बना रहे हैं। इसके कागज से लेकर कपड़ा और कवर की सिलाई भी विशेष रूप से की जाती है। सबसे बड़ी बही २५ इंच लंबी और १० इंच चौड़ी होती है। इसके लिए अकाउंट बुक पेपर का उपयोग करते हैं, जो विशेष रूप में कपड़ा मिक्स कर बनाया जाता है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो