scriptSuccess Stories : मेहनत से तय किया लोकल मार्केट से ग्लोबल पहचान बनाने तक का सफर | A journey from hard to determined global market to global identity | Patrika News

Success Stories : मेहनत से तय किया लोकल मार्केट से ग्लोबल पहचान बनाने तक का सफर

locationइंदौरPublished: Feb 20, 2019 12:38:58 pm

सपने बुनना आसान होता है, लेकिन उन्हें सच करने की राह चुनौतियों और मुसीबतों से घिरी रहती है।

इंदौर. सफलता के सपने हर कोई देखता है, लेकिन हकीकत में तब्दील कर पाना बहुत ही कम लोगों के लिए मुमकिन होता है। मंगलवार को ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में प्रिय सखी संगठन द्वारा आयोजित नारी शक्ति सम्मान का आयोजन किया गया। इसमें आत्मनिर्भर महिलाओं ने ख्वाबों के सफर से मंजिल तक पहुंचने के अनुभव साझा किए। हम आपको बता रहे हैं उनके संघर्ष की कहानी।
संस्था सचिव आरती कुशवाह ने बताया, संस्था हमेशा से छोटे-छोटे बिजनेस कर रही महिलाओं को बढ़ाने में मदद करती है। हम महिलाओं को प्रशिक्षण देने के साथ ही बैंकिंग संबंधी समस्याओं का समाधान बताते हैं। कार्यक्रम में 110 सफल व आत्मनिर्भर महिलाओं का सम्मान किया। अतिथि नाबार्ड के छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश मुख्य प्रबंधक एसके बंसल, नर्मदा झाबुआ ग्रामीण बैंक चेयरमैन विजय कुमार थे।
छोटी सी दुकान से बनी थोक व्यापारी
– मंजू पंवार, किराना व्यवसायी
पहले हमारी एक छोटी सी किराने की दुकान थी। हमारे पास इतना पैसा नहीं था कि दुकान में ज्यादा माल रख सकें, इसीलिए कई बार ग्राहक खाली जाते थे। हमने छोटे-छोटे लोन लेकर इंवेस्टमेंट करना शुरू किया। समय के साथ परिस्थितियां बदलती गईं और मुनाफा हुआ तो व्यापार बढ़ता गया। आज हमारा किराने का होलसेल बिजनेस है।
पहले पढ़ाई के पैसे भी नहीं थे, अब दो बहनें डॉक्टर व भाई इंजीनियर
– कुसुम कुशवाह, सीजनल आइटम्स
हमारा बिजनेस सीजन के हिसाब से होता है। हम राखियां, तोरण, पिचकारी, डिस्पोजल आदि का बिजनेस करते हैं। पहले हमारी एक सीजन की कमाई ३० से ४० हजार होती थी और अब हमारी मासिक आय एक से डेढ़ लाख रुपए के बीच है। रानी कहती हैं, हमने पांच से सात बार लोन लेकर इंवेस्टमेंट किया। हर प्रयास के साथ सफलता मिलती गई। अब हमारा बिजनेस इंटरनेशनल लेवल पर पहुंच गया है। हमारा माल कनाडा और दुबई में भी जाता है। एक समय ऐसा था, जब मेरे पास १२वीं के बाद पढ़ाई करने के लिए भी पैसे नहीं थे, लेकिन अब हम दोनों बहनें डॉक्टर हैं और भाई इंजीनियर। मेरा मानना है कि लगन और मेहनत से हर ख्वाब को सच करके दिखाया जा सकता है।
साइकिल पर कैरेट बांधकर करते थे सेलिंग, अब खुद की बेकरी में दूसरों दो रहे रोजगार
– माधुरी विजय भंगारे, बेकरी बिजनेस
मैं पहले एक बेकरी में काम करती थी, लेकिन मेरी सपना अपना खुद का व्यवसाय करना था, इसीलिए 2005 में खुद का बेकरी बिजनेस स्टार्ट किया। शुरुआत में मेरे पति अपनी साइकिल पर कैरेट लेकर सेलिंग के लिए जाते थे। उसके बाद हमारा काम लोगों का पसंद आया और हमें अच्छे ऑर्डर मिलना शुरू हो गए। मुझे याद है कि एक समय मैं खुद चार हजार रुपए में काम करती थी, लेकिन अब हमारी बेकरी में ६ लोग काम कर रहे हैं।
एक मशीन से शुरुआत, अब 40 कारीगर
– सुषमा प्रजापत, रेडीमेड व्यवसायी
मैंने अपने रेडिमेड बिजनेस की शुरुआत 20 हजार के इंवेस्टमेट के साथ एक मशीन से की थी। चार बार लोन लिया और धीरे-धीरे आगे बढ़े। हमने कारीगरों को भी सिखाया। अब हमारा खुद का कारखाना है, जिसमें लगभग 40 कारीगर काम करते हैं।
माउथ पब्लिसिटी का चला मैजिक, खुद का बुटिक खोला, 10 गुना बढ़ी आय
– सविता जयसवाल, बुटिक ऑनर
मैंने साल 2007 में एक सिलाई मशीन से अपना सफर शुरू किया था। मैं हमेशा से खुद को आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी। इस काम में ससुराल वालों का सर्पोट नहीं मिला तब भी हार नहीं मानी। खुद से डिजाइनर ब्लाउज सिलना स्टार्ट किया। मेरी डिजाइंस सबको पसंद आई और माउथ पब्लिसिटी की वजह से मुझे ज्यादा काम मिलने लगा। अब मेरे बुटिक पर चार कारीगर काम करते हैं। पहले एक महीने में दो से तीन हजार का काम मिल जाता था लेकिन, अब मैं मासिक 30 हजार के लगभग कमा लेती हूं। मैं इस सफर में खुद को और भी ज्यादा आगे बढ़ाना चाहती हूं और खुद की पहचान एक प्रमुख डिजाइनर के रूप में बनाना चाहती हूं।
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