दूसरा सरकार की तेल की बढ़ती कीमतों को दबाने के प्रयास और चुप्पी ने सभी को इन परिस्थितियों पर सोचने को मजबूर कर दिया। क्या ये कहा जाए कि ब्याज दरों पर रोक आरबीआई ने इसलिए लगाया क्योंकि बैंकों के लक्ष्य पूरे नहीं हो पाते ? इसके लिए कोई राजी नहीं होगा। पर सवाल उठता है कि क्या केंद्रीय बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी क्या वो काम कर रही है जो उसे करना चाहिए। बढ़ावा आरबीआइ के फैसले से मिला और रुपया कमजोर हुआ। उम्मीद थी कि ब्याज दरें बढ़ेंगी तो विदेशी निवेशक अपनी रुपए वाली संपत्तियों को नहीं बेचेंगे पर ऐसा कुछ नहीं हो सका।
पर बहुत देर हो गई
तेल सस्ता करने के लिए सरकार ने टैक्स कम किया है लेकिन इससे सरकारी राजकोष को घाटा होना तय है। बीजेपी शासित कई राज्यों में चुनाव होने हैं। केंद्र के फैसले के बाद राज्य सरकारें भी अपने स्तर से तेल की कीमतें कम करने में लगी हैं। हालांकि इसमें बहुत देर हुई और जनता को तेल की कीमत और सरकार की मंशा का गणित काफी हद तक समझ में आ चुका है। 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार में मोदी ने पिछली सरकार को तेल पर ही घेरा था। लोकसभा चुनावों में भारी मतों से जीत के बाद जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में गिरावट आई तो मोदी ने इसका पूरा श्रेय लिया, पर अब वे खुद घिर गए हैं।
तेल पर विपक्ष के तेवर
विपक्ष सरकार से सस्ते तेल और रुपए की मजबूती की मांग कर रहा है और सरकार दावा कर रही है कि वे दोनों मुहैया करा रही है जबकि हकीकत को दबाया जा रहा है। तेल की कीमतें बढ़ेंगी रुपया कमजोर होगा और तेल की कीमतों में उतार चढ़ाव का दौर जारी रहेगा। सरकार को रेनेयूबल एनर्जी, डैम और पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर ध्यान देना होगा जिससे परेशानी कम होगी। जब भी तेल की कीमतें बढ़ेंगी रुपया कमजोर होगा और तेल की कीमतों में उतार चढ़ाव का दौर ऐसे ही जारी रहेगा। ऐसे में केंद्रीय बैंक को महंगाई दर को लेकर हमेशा चिंचित रहना पड़ेगा।
मिहिर शर्मा, ब्लूमबर्ग ओपिनियन,वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत