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हुबली

राजस्थान मूल की याशिका ने दो महीने में तैयार की गिरनार तीर्थ की बेहतरीन पेंटिंग, नई तकनीक से उभारी सुन्दरता

विश्व कला दिवस पर विशेष
उभरते युवा कलाकार, कैनवास से लेकर दीवारों तक बोलती हैं इनकी कला, पेंटिंग और पोट्रेट बनाकर बनाई पहचान

हुबलीApr 14, 2024 / 04:12 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

Yashika Jain prepared a beautiful painting of Girnar pilgrimage

Yashika Jain prepared a beautiful painting of Girnar pilgrimage

कला अभिव्यक्ति और भावनाओं को तराशने का एक सशक्त माध्यम है। कोरोना महामारी के बीच कला को अधिक पहचान मिली। जब विश्वभर के लोग चारदीवारी में बंद थे, तो कला ने ही तनाव और अकेलेपन को दूर करने का प्रयास किया। कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक वर्ष 15 अप्रेल को विश्व कला दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को कला के प्रति जागरूक किया जाता है। इटली के महान चित्रकार लिओनार्दो दा विंची का जन्म 15 अप्रेल 1452 को हुआ था। लिओनार्दो दा विंची महान मूर्तिकार और वास्तुशिल्पी भी थे। उन्हें कला का भंडार भी कहा जाता है। कला मतलब सौन्दर्यात्मक तरीके से किया गया कार्य है। ललित कलाओं की संख्या पांच बताई गई है। इनमें चित्रकला, मूर्तिकला, नृत्य, गायन और वादन शामिल है, लेकिन कला शब्द सुनते ही मस्तिष्क में केवल चित्रकला की छवि उत्पन्न हो जाती है। हुब्बल्ली शहर में भी कुछ युवा कलाकार हैं, जो कला के इस क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। वे रंग और कूची से अपनी कला को जीवंत बना रहे हैं। मिलिए ऐसे ही कुछ कलाकारों से:
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याशिका ने दो महीने में तैयार की गिरनार तीर्थ की बेहतरीन पेंटिंग, नई तकनीक से उभारी सुन्दरता

हुब्बल्ली की याशिका जैन ने गिरनार तीर्थ की आकर्षक पेंटिंग तैयार की है। इसे बनाने में करीब दो महीने का समय लगा। याशिका ने नई तकनीक का समावेश कहते हुए यह पेंटिंग तैयार की। याशिका कहती हैं, जूनागढ़ में स्थित यह तीर्थ मेरे दिल से जुड़ा हुआ है। गिरनार तीर्थ पर भगवान नेमीनाथ ने मोक्ष प्राप्त किया था। यह एक है विज़ुअल मास्टर पीस हैं जो गिरनार के विस्मयकारी परिदृश्य से परिचित कराता है। यह कला गिरनार प्रेमियों के लिए बनाई है। याशिका ने बताया, यह एक मिट्टी का मॉडल है और इसे एम्बॉस पेंटिंग कहा जाता है। इस पेंटिंग को बनाने की प्रक्रिया भी अनूठी थी। मैंने इस कला को बनाते समय नई तकनीक सीखी। उभरी हुई बनावट, जीवंत रंग और कुशल शिल्प कौशल इस कला को और मनोरम बनाते हैं। इससे गिरनार की सुंदरता उभर कर सामने आई है।
पालीताणा की पेंटिंग भी बना चुकी
याशिका इससे पहले भी पालीताणा की एक पेंटिंग करीब एक महीने में पूरी कर चुकी है। इसके साथ ही नेमीनाथ भगवान समेत अन्य पेंटिंग तैयार की है। याशिका ने एक पीओपी एम्बोस पेंटिंग में मंदिर एवं प्रकृति को दर्शाया है। बीबीए (मार्केटिंग) तक पढ़ाई कर चुकी याशिका कहती है, कोविड के समय भी मैंने कई पेेंटिंग तैयार की। उस दौरान काफी समय मिल जाता था। यह वह दौर था जब पेंटिंग को बारीकी से समझने का अवसर भी मिला। वह केनवास पेंटिंग, मिनिएचर पेंटिंग, पेंसिंल पोट्रेट, कलर पेंसिंल पोट्रेट बनाती है। केनवास पेंटिंग में याशिका की खास दिलचस्पी है। पुराने जमाने में भी केनवास पेंटिंग अधिक की जाती थी। वे अब तक करीब एक दर्जन पेंटिंग तैयार कर चुकी है। वह खुद रोजाना तीन से चार घंटे पेंटिंग में बिताती है।
पेंटिंग को मिल चुकी सराहना
वे कहती हैं, पेंटिंग हमें कई चीजें सिखा देती है। एकाग्रता, लगन के गुण हम पेंटिंग के जरिए सीख सकते हैं। पेंटिंग हमें धैर्य सिखाती है। पेंटिंग हमें निखारने का काम करती है। पेंटिंग बनाने के बाद जो संतुष्टि मिलती है उसे हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं। वह कहती हैं, पेंटिंग में बारीकी से काम करना पड़ता है। याशिका ने मदीना लक्ष्मेश्वर से पेंटिंग की बारीकियां सीखीं है। वह अब पलक झपकते पेंटिंग तैयार कर लेती है। वे जीतो की प्रदर्शनी तथा युवा-टाइकॉन में भी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगा चुकी है। याशिका कहती है, मुझे बचपन से ही पेंटिंग में रूचि रही है। स्कूल स्तर पर कई पेंटिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मृदा बचाओ विषय पर वॉल पेंटिंग की। इस प्रतियोगिता में पुरस्कार व प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस पेंटिंग को काफी सराहना मिली। याशिका राजस्थान के जालोर जिले के रेवतड़ा की रहने वाली है। बिजनसमैन पिता श्रीपाल जैन मांडौत तथा माता कुसुम मांडौत का भी लगातार प्रोत्साहन उसे मिला।

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