पालीताणा की पेंटिंग भी बना चुकी
याशिका इससे पहले भी पालीताणा की एक पेंटिंग करीब एक महीने में पूरी कर चुकी है। इसके साथ ही नेमीनाथ भगवान समेत अन्य पेंटिंग तैयार की है। याशिका ने एक पीओपी एम्बोस पेंटिंग में मंदिर एवं प्रकृति को दर्शाया है। बीबीए (मार्केटिंग) तक पढ़ाई कर चुकी याशिका कहती है, कोविड के समय भी मैंने कई पेेंटिंग तैयार की। उस दौरान काफी समय मिल जाता था। यह वह दौर था जब पेंटिंग को बारीकी से समझने का अवसर भी मिला। वह केनवास पेंटिंग, मिनिएचर पेंटिंग, पेंसिंल पोट्रेट, कलर पेंसिंल पोट्रेट बनाती है। केनवास पेंटिंग में याशिका की खास दिलचस्पी है। पुराने जमाने में भी केनवास पेंटिंग अधिक की जाती थी। वे अब तक करीब एक दर्जन पेंटिंग तैयार कर चुकी है। वह खुद रोजाना तीन से चार घंटे पेंटिंग में बिताती है।
पेंटिंग को मिल चुकी सराहना
वे कहती हैं, पेंटिंग हमें कई चीजें सिखा देती है। एकाग्रता, लगन के गुण हम पेंटिंग के जरिए सीख सकते हैं। पेंटिंग हमें धैर्य सिखाती है। पेंटिंग हमें निखारने का काम करती है। पेंटिंग बनाने के बाद जो संतुष्टि मिलती है उसे हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं। वह कहती हैं, पेंटिंग में बारीकी से काम करना पड़ता है। याशिका ने मदीना लक्ष्मेश्वर से पेंटिंग की बारीकियां सीखीं है। वह अब पलक झपकते पेंटिंग तैयार कर लेती है। वे जीतो की प्रदर्शनी तथा युवा-टाइकॉन में भी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगा चुकी है। याशिका कहती है, मुझे बचपन से ही पेंटिंग में रूचि रही है। स्कूल स्तर पर कई पेंटिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मृदा बचाओ विषय पर वॉल पेंटिंग की। इस प्रतियोगिता में पुरस्कार व प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस पेंटिंग को काफी सराहना मिली। याशिका राजस्थान के जालोर जिले के रेवतड़ा की रहने वाली है। बिजनसमैन पिता श्रीपाल जैन मांडौत तथा माता कुसुम मांडौत का भी लगातार प्रोत्साहन उसे मिला।