आपको बताते चलें कि द्रोणागिरी गांव में करीब सौ परिवार ऐसे हैं जो समुद्रतल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर आज भी निवास करते हैं, ठंड में यह गांव पूरी तरह से बर्फ से ढक जाता है, तब यहां के ग्रामीण छह माह तक जिले के निचले क्षेत्रों में प्रवास करते हैं। ग्रीष्मकाल के छह माह तक इस गांव में खूब चहल-पहल रहती है। ग्रामीण व्यवसाय में मुख्य रूप से ऊन के साथ ही सब्जी, दाल और आलू का भी उत्पादन करते हैं।
ग्रामीण गांव के पास स्थित द्रोणागिरी पर्वत को ‘पर्वत देवता’ के रूप में पूजते हैं और त्रेता युग की उस घटना के बाद जब राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तो वैद्य के कहने पर रामभक्त हनुमान संजीवनी बूटी लेने के लिए द्रोणागिरी गांव पहुंचे थे। तब संजीवनी बूटी की पहचान नहीं होने से वे द्रोणागिरी पर्वत के एक बड़े हिस्से को ही उठाकर ले गए थे।
तब से लेकर आज तक ग्रामीण लोग बजरंग बली हनुमान से नाराज चल रहे हैं। ग्रामीण वासियों का कहना है कि बजरंग बली हनुमान तब द्रोणागिरी पर्वत देवता की दाहिनी भुजा को उखाड़ कर ले गए थे, इसलिए ग्रामीण आज भी हनुमान जी से नाराज है। गांव में हनुमान की पूजा नहीं होती है