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आखिर क्यों इस जगह पर हनुमान जी की एंट्री होते ही रामलीला को कर दिया जाता है बंद, जानें हैरान कर देने वाली वजह

locationनई दिल्लीPublished: Oct 03, 2019 11:57:14 am

Submitted by:

Pratibha Tripathi

उत्तराखंड के चमोली जिले में चीन (तिब्बत) सीमा क्षेत्र में स्थित है द्रोणागिरी गांव
राम लीला में हनुमान जी की पूजा पर रोक
बजरंग बली हनुमान द्रोणागिरी पर्वत देवता की दाहिनी भुजा को उखाड़ कर ले गए थे

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नई दिल्ली। नवरात्र प्रारम्भ होने से पहले रामलीला का मंचन शुरू हो जाता है, कई जगह स्थानीय लोग तो गई जगह रामलीला मंडली रामायण का जीवंत मंचन करने की कोशिश करती है। रामलीला में भगवान राम के जीवन की हर घटनाओं को दर्शाया जाता है। इस दौरान लोग कुछ समय के लिये दुख सुख को भुला कर रामायण को जीवंत करने की पूरी कोशिश करते हैं, रामायण के प्रमुख पत्रों में से एक है हनुमान जी का, उनके किरदार को देख कर वानर सेना के महत्व का भी पता चलता है लेकिन एक गांव ऐसा है जहां हनुमान जी की एंट्री होते ही रामलीला का समापन हो जाता है, इसके पीछे की मुख्य वजह है उत्तराखंड के चमोली जिले में चीन (तिब्बत) सीमा क्षेत्र पर स्थित द्रोणागिरी गांव की वो पौराणिक कहानी जिसमें लोग आज भी रामभक्त हनुमान से नाराज हैं। जिसके चलते इस गांव के लोग बजरंग बली की पूजा तक नही करते है।
रामलीला के मंचन के दौरान जैसे ही हनुमान जी की एंट्री होती है तो यहां के लोग रामलीला बंद कर देते हैं। ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में मेघनाद ने वीरघातिनी शक्ति बाण से लक्ष्मण पर प्रहार किया था तो उस दौरान वो मूर्छित हो गए थे उन्हें बचाने के लिये शुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी लाने के लिये कहा था और हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने द्रोणागिरी गांव आए थे और गांव के पास द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़ कर ले गए थे। गांव के लोग मानते हैं कि हनुमान उस समय उनके द्रोणागिरी पर्वत देवता की दाहिनी भुजा उखाड़ कर ले गए थे।

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आपको बताते चलें कि द्रोणागिरी गांव में करीब सौ परिवार ऐसे हैं जो समुद्रतल से करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर आज भी निवास करते हैं, ठंड में यह गांव पूरी तरह से बर्फ से ढक जाता है, तब यहां के ग्रामीण छह माह तक जिले के निचले क्षेत्रों में प्रवास करते हैं। ग्रीष्मकाल के छह माह तक इस गांव में खूब चहल-पहल रहती है। ग्रामीण व्यवसाय में मुख्य रूप से ऊन के साथ ही सब्जी, दाल और आलू का भी उत्पादन करते हैं।
ग्रामीण गांव के पास स्थित द्रोणागिरी पर्वत को ‘पर्वत देवता’ के रूप में पूजते हैं और त्रेता युग की उस घटना के बाद जब राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तो वैद्य के कहने पर रामभक्त हनुमान संजीवनी बूटी लेने के लिए द्रोणागिरी गांव पहुंचे थे। तब संजीवनी बूटी की पहचान नहीं होने से वे द्रोणागिरी पर्वत के एक बड़े हिस्से को ही उठाकर ले गए थे।
तब से लेकर आज तक ग्रामीण लोग बजरंग बली हनुमान से नाराज चल रहे हैं। ग्रामीण वासियों का कहना है कि बजरंग बली हनुमान तब द्रोणागिरी पर्वत देवता की दाहिनी भुजा को उखाड़ कर ले गए थे, इसलिए ग्रामीण आज भी हनुमान जी से नाराज है। गांव में हनुमान की पूजा नहीं होती है

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