पत्नी को पढ़ाई के लिए भेजा कनाडा, वापस लौटी तो किसी दूसरे से रचा ली शादी अफस्पा संसद की ओर से 1958 में पास किया गया था। इसके तहत कुछ खास क्षेत्रों में तैनात सुरक्षाबलों को संबंधित क्षेत्र में कार्रवाई के लिए विशेषाधिकार दिए गए हैं। अफस्पा के अनुसार- सुरक्षाबलों को बिना आज्ञा के किसी भी स्थान की तलाशी लेने और खतरे की स्थिति में उसे नष्ट करने, बिना अनुमति किसी की गिरफ्तारी करने और यहां तक कि कानून तोड़ने वाले व्यक्ति पर गोली चलाने तक का अधिकार हैं।
यह कानून किसी क्षेत्र की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि किसी क्षेत्र में उग्रवादी तत्वों की अत्यधिक सक्रियता के संकेत मिलते हैं, तब संबंधित राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र की ओर से उसे ‘अशांत’ घोषित करके वहां अफस्पा लागू किया जा सकता है। इसके तहत केंद्रीय सुरक्षाबलों को तैनात किया जाता है।
परंपरा के नाम पर मां-बाप बेचते हैं बेटियां, खुलेआम लगती है मंडी इस समय मणिपुर, नगालैंड, असम, जम्मू-कश्मीर राज्यों में अलग-अलग प्रकार की अलगाववादी और उग्रवादी शक्तियां सक्रिय हैं। असम में उल्फा है, तो मणिपुर और नगालैंड में मिले-जुले उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं। जम्मू-कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकी सामने आते रहते हैं। लेकिन इनमें समानता ये है कि सभी देश की अखंडता को क्षति पहुंचा रहे हैं। इन्हीं तत्वों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अफस्पा लागू किया गया। हालांकि अक्सर बीपी जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशों केा आधार बनाकर ये तर्क दिया जाता है कि ऐेसे तत्वों से निपटने के लिए बिना अफस्पा के भी सेना की तैनाती की जा सकती है। जानकारों के अनुसार- ऐसा करना उतना प्रभावी नहीं होता, जिस तरह से अफस्पा लागू करने से होता है।
राजनीति नहीं, ‘कचरे’ पर भिड़े दुनिया के ये दो बडे देश, एक ने राजदूत को वापस बुलाया मानवाधिकार संगठन इसलिए करते हैं विरोध हालांकि अफस्पा लागू करने के कई फायदे हैं , लेकिन कुछ राज्यों में विवादास्पद मामले सामने आए, जिस कारण मानवाधिकार संगठन इसका विरोध करते हैं। मणिपुर में साल 2000 के नवंबर में असम राइफल्स के जवानों पर दस निर्दोष लोगों को मारने का आरोप लगा था। इसी के विरोध में अफस्पा खत्म करने की मांग के साथ मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गई थीं। उनका अनशन 16 साल तक जारी रहा था। इस दौरान नाक में नली लगाकर उन्हें भोजन दिया जाता रहा।