ग्रह नक्षत्रों की शुभ स्थिति से इस दिन शुक्ल और रवियोग बनेगा। सिंह राशि में चतुग्र्रही योग भी बन रहा है। ज्योतिर्विदों के अनुसार दो सितम्बर सोमवार की शुरुआत हस्त नक्षत्र में होगी और गणेशजी की स्थापना चित्रा नक्षत्र में की जाएगी। शहर में सोमवार को दिन में प्रतिमा स्थापना और रात में महिलाएं तीज का व्रत रखेंगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अमृत चौघडिय़ा में सुबह 6.10 से 7.44 तक और अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 12.01 से 12.55 तक मूर्ति स्थापना करना शुभ होगा।
दिन में 11.00 बजे के 14 मिनट से तृतीय तिथि का आगमन हो रहा है 2 सितंबर दिन सोमवार को 8.52 तक तृतीया तिथि रहेगी 2 सितंबर को सोमवार में सूर्योदय होगा 5.46 पर हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य को प्रधानता देते हुए सूर्य को गति देखते हुए यह व्रत उद्या कालीन तिथि में तृतीय रहेगी इसलिए सूर्योदय के समय जो तिथि हो वह संपूर्ण दिन मान्य होती है इसलिए इस व्रत को 2 सितंबर को करना श्रेष्ठ रहेगा
प्रदोष काल मुहूर्त.6.43 बजे से 8.58 बजे तक रहेगा।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार पंचाग में दो सितम्बर को हस्तानक्षत्र बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार तृतीया और चतुर्थी मिली हुई तिथि में तीज व्रत का पूजन करना श्रेष्ठ है। इसलिए दो सितम्बर को तीज व्रत रखा जाएगा। इस दिनमहिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रहेंगी। रात में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करेंगी। विवाहिताएं पति की दीर्घायु की कामना करेंगी। युवतियां मनचाहे वर प्राप्ति के लिए उपवास करती हैं।
पंडि़त शुभम दुबे का कहना है कि इस वर्ष शुभ संयोग है। हरतालिका और गणेश चतुर्थी, दोनों सोमवार को हैं। ज्यादातर पंचाग में तीज के व्रत के लिए सोमवार को श्रेष्ठ बताया गया है। इस संयोग के कारण इस बार मध्यान्ह से शाम तक के बीच में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापना होगी। रात में महिलाएं हरितालिका पूजन करेंगी।
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को पहली बार मां पार्वती ने भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए किया था. मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए अन्न और जल सभी का त्याग कर दिया था. उनके पिता की इच्छा थी कि पार्वती भगवान विष्णु से शादी कर लें. लेकिन मां पार्वती के मन मंदिर में भगवान शिव बस चुके थे और इसलिए उन्होंने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और कठोर तपस्या शुरू कर दी।
जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही हैं। लेकिन उनके पिता चाहते हैं कि पार्वती का विवाह विष्णु जी से हो जाए। इस पर उनकी उस सहेली ने माता पार्वती को वन में जाने कि सलाह दी। जिसके बाद माता पार्वती ने ऐसा ही किया और वो एक गुफा में जाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गई थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का बनाया और शिव जी की स्तुति करने लगी। पार्वती जी ने रात भर भगवान शिव का जागरण किया। इतनी कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। तबसे हरतालिका तीज मनाया जाने लगा। जो कुंवारी लड़किया इस व्रत को करती है उसे मनचाहा वर प्राप्त होता है। वहीं महिलाओं के पति की आयु लम्बी होती है