HIV-AIDS नहीं लाइलाज, मधुमक्खी के डंक से खात्मा संभव!
प्रमुख कारण : श्लेष्मा झिल्ली का काम बलगम (म्यूकस) को बाहर निकालना और साफ हवा प्रसारण करना होता है। लेकिन बार-बार कीटाणुओं का हमला इस झिल्ली पर होता रहे तो बलगम जमा होता रहता है और बैक्टीरिया व वायरस पनपने लगते हैं। इससे स्थिति बिगडऩे पर सूजन आ जाती है। ये कीटाणु धूल-मिट्टी, प्रदूषण व अन्य चीजों से एलर्जी, जुकाम, ठंडे वातावरण या लगातार धूम्रपान करने से पनपते हैं।
प्रमुख कारण : श्लेष्मा झिल्ली का काम बलगम (म्यूकस) को बाहर निकालना और साफ हवा प्रसारण करना होता है। लेकिन बार-बार कीटाणुओं का हमला इस झिल्ली पर होता रहे तो बलगम जमा होता रहता है और बैक्टीरिया व वायरस पनपने लगते हैं। इससे स्थिति बिगडऩे पर सूजन आ जाती है। ये कीटाणु धूल-मिट्टी, प्रदूषण व अन्य चीजों से एलर्जी, जुकाम, ठंडे वातावरण या लगातार धूम्रपान करने से पनपते हैं।
लक्षण: ज्यादा समय तक नाक बंद रहना, आंख, नाक या गले में या आसपास सूजन, सूंघने व स्वाद पहचानने की क्षमता में कमी, चेहरा या सिर में दर्द रहना, अधिक बलगम बनना, तनाव, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी होना।
यह रखें ध्यान
विटामिन-सी युक्त आहार जैसे मौसमी, संतरा, अमरूद, आंवला और अनार आदि का प्रचुर मात्रा में प्रयोग करें। विटामिन-सी श्वेत रक्तकणिकाओं की संख्या को बढ़ाता है। विटामिन-ए से युक्त आहार का लेंं। यह श्लेष्मिक झिल्ली को मजबूत करता है। सुबह-शाम दूध में एक-एक चम्मच हल्दी मिलाकर पीएं। हल्दी
एंटीएलर्जिक होती है तथा जीवाणुओं व विषाणुओं को नष्ट करती है।
आहार-विहार
यदि आयुर्वेद द्वारा निर्देशित दिनचर्या, आहार-विहार और औषधि का प्रयोग करते हैं तो इस रोग से स्थायी रूप से मुक्ति पा सकते हैं।
ब्रह्ममुहूर्त में उठे : साइनोसाइटिस से ग्रसित व्यक्ति को प्रात:काल जल्दी उठना चाहिए। मरीज को सीधे पंखे के नीचे सोने की बजाय खुले स्थान में सोना चाहिए या पंखे से दूर सोना चाहिए।
गहरी सांस लें : प्रात:काल उठने के बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर दो-तीन किलोमीटर खुली हवा में टहलने जाएं व गहरी सांस लें।
जलनेति करें : 1500 मिली पानी में 15-20 ग्राम नमक व 5 ग्राम सोडा मिलाकर उबाल लें। इसे गुनगुना कर नेति पात्र में भर लें। पात्र के नोजल को पहले बाएं नथुने से लगाएं एवं दाएं नथुने को थोड़ा नीचे की ओर झुका लें। इससे जल बाएं नथुने से दाएं नथुने से बाहर निकलने लगेगा। इस प्रक्रिया को दूसरी ओर
से दोहराएंं। फिर सीधे खड़े होकर नाक से अपशिष्ट पानी को बाहर निकाल दें। ऐसा दिन में 2-3 बार करें। नथुनों में जमा कफ व जीवाणु बाहर निकल जाएंगे और लाभ मिलेगा।
यह रखें ध्यान
विटामिन-सी युक्त आहार जैसे मौसमी, संतरा, अमरूद, आंवला और अनार आदि का प्रचुर मात्रा में प्रयोग करें। विटामिन-सी श्वेत रक्तकणिकाओं की संख्या को बढ़ाता है। विटामिन-ए से युक्त आहार का लेंं। यह श्लेष्मिक झिल्ली को मजबूत करता है। सुबह-शाम दूध में एक-एक चम्मच हल्दी मिलाकर पीएं। हल्दी
एंटीएलर्जिक होती है तथा जीवाणुओं व विषाणुओं को नष्ट करती है।
आहार-विहार
यदि आयुर्वेद द्वारा निर्देशित दिनचर्या, आहार-विहार और औषधि का प्रयोग करते हैं तो इस रोग से स्थायी रूप से मुक्ति पा सकते हैं।
ब्रह्ममुहूर्त में उठे : साइनोसाइटिस से ग्रसित व्यक्ति को प्रात:काल जल्दी उठना चाहिए। मरीज को सीधे पंखे के नीचे सोने की बजाय खुले स्थान में सोना चाहिए या पंखे से दूर सोना चाहिए।
गहरी सांस लें : प्रात:काल उठने के बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर दो-तीन किलोमीटर खुली हवा में टहलने जाएं व गहरी सांस लें।
जलनेति करें : 1500 मिली पानी में 15-20 ग्राम नमक व 5 ग्राम सोडा मिलाकर उबाल लें। इसे गुनगुना कर नेति पात्र में भर लें। पात्र के नोजल को पहले बाएं नथुने से लगाएं एवं दाएं नथुने को थोड़ा नीचे की ओर झुका लें। इससे जल बाएं नथुने से दाएं नथुने से बाहर निकलने लगेगा। इस प्रक्रिया को दूसरी ओर
से दोहराएंं। फिर सीधे खड़े होकर नाक से अपशिष्ट पानी को बाहर निकाल दें। ऐसा दिन में 2-3 बार करें। नथुनों में जमा कफ व जीवाणु बाहर निकल जाएंगे और लाभ मिलेगा।
– वैद्य अश्विनी कुमार शर्मा
एसो. प्रोफेसर, पं.म.मो.मा.राज. आयुर्वेद महाविद्यालय, उदयपुर
एसो. प्रोफेसर, पं.म.मो.मा.राज. आयुर्वेद महाविद्यालय, उदयपुर