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संक्रमण, लीवर सिरोसिस व खराब खानपान से होती है तिल्ली बढ़ने की तकलीफ

मेडिकली तिल्ली बढऩा एक रोग नहीं बल्कि कई रोगों के लक्षणों में से एक हैं। जानें इलाज-

Oct 10, 2017 / 04:41 pm

विकास गुप्ता

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मेडिकली तिल्ली बढऩा एक रोग नहीं बल्कि कई रोगों के लक्षणों में से एक हैं। जानें इलाज-

तिल्ली यानी स्प्लीन पेट से जुड़ा एक अंग है जो पेट के बाईं ओर स्थित है। इसके तीन मुख्य काम हैं। लाल रक्त कोशिकाओं की गुणवत्ता बनाए रखना, खराब रक्त कोशिकाएं नष्ट करना व बैक्टीरिया आदि से लडऩे के लिए एंटीबॉडी बनाना। रोग से ग्रस्त होने पर तिल्ली इम्यूनिटी भी बढ़ाती है। सामान्य से ज्यादा आकार होना स्प्लीनोमेगेली कहलाता है। वहीं आकार 20 सेंटीमीटर से ज्यादा होने की स्थिति जानलेवा हो सकती है। मेडिकली तिल्ली बढऩा एक रोग नहीं बल्कि कई रोगों के लक्षणों में से एक हैं। जानें इलाज-

प्रमुख कारण
स्प्लीन का कार्य बढऩे पर यानी किसी रोग के कारण जब शरीर की जरूरत बढ़ती है तो इसका आकार भी बढ़ जाता है। जैसे थैलेसीमिया सिंड्रोम, ब्लड कैंसर, ल्यूकीमिया जैसे रोगों में श्वेत रुधिर कणिकाओं की संख्या ज्यादा हो जाती है व इन्हें नष्ट करने के लिए तिल्ली को क्षमता से ज्यादा रक्त बनाना पड़ता है। मलेरिया, काला ज्वर, वायरल हेपेटाइटिस, ट्यूबरक्यूलोसिस जैसे संक्रमण में तिल्ली प्रभावित होने लगती है जिससे भी आकार बढ़ जाता है।
शरीर में ब्लड सप्लाई का काम स्प्लीन करता है। ऐसे में इस अंग से जब ब्लड जाने और आने वाली नलिकाओं में बाधा आती है जैसे किसी कारण से खून के थक्के जमने लग जाते हैं तो यह दिक्कत होती है। इस स्थिति में आकार बढऩे से कई बार तिल्ली फट जाती है।
लक्षण और जांचें
पेट के बाएं हिस्से में ऊपरी तरफ हल्का दर्द होना। अंग का अपनी जगह से खिसकने जैसा अहसास होना।
अत्यधिक आकार बढऩे पर हाइपरस्प्लीनिज्म हो जाता है। इसमें रक्त की कोशिकाएं (आरबीसी, डब्ल्यूबीसी व प्लेटलेट) नष्ट होने लगती हैं और शरीर में इनकी संख्या घट जाती है। ऐसे में आरबीसी कम होने पर एनीमिया, डब्ल्यूबीसी कम होने पर कई तरह के इंफेक्शन का खतरा और प्लेटलेट्स घटने पर रक्त का थक्का नहीं जम पाता। अल्ट्रासाउंड और सीटीस्कैन करते हैं।

स्थायी रूप से बढ़ती तिल्ली
व्यक्ति को यदि बार-बार मलेरिया का संक्रमण और ट्यूबरक्यूलोसिस होता है तो स्थिति हाइपरस्प्लीनिज्म की बनने लगती है। ऐसे में तिल्ली का आकार स्थायी रूप से बढ़ा हुआ रहता है। इस दौरान तिल्ली समय से पहले और तेजी से रक्त कोशिकाओं को हटाने लगती है। ऐसे में मरीज को पेट के ऊपरी बाएं हिस्से में दर्द होता रहता है। इसलिए मसालेदार, तलाभुना, जंकफूड से परहेज करें। जरूरत से ज्यादा पानी न पीएं। शराब, तंबाकू व धूम्रपान से दूरी बनाएं।

इनका रखें ध्यान
यदि किसी व्यक्तिको हेपेटाइटिस बी व सी का खतरा है या फिर इनसे पीडि़त है तो गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट से संपर्क कर पूरा इलाज लें। ये लीवर सिरोसिस का कारण है जो अप्रत्यक्ष रूप से तिल्ली पर असर करते हैं। स्प्लीनेक्टॉमी में अंग के बाहर निकालने से संबंधित कार्य नहीं हो पाता। वहीं यदि यह सर्जरी २० की उम्र के आसपास हुई है तो इम्यूनिटी कम होने से वायरल व बैक्टीरियल इंफेक्शन की आशंका बढ़ती है। बचाव के लिए टीके लगवाएं।

नुस्खे अपनाएं
रोहेड़ा पेड़ की छाल को कूटकर इसके चूर्ण को बड़ी हरड़ के चूर्ण के साथ २-४ ग्राम की मात्रा में लेने से फायदा होता है। पुनर्नवा, गिलोय और ग्वारपाठा का प्रयोग तिल्ली के आकार को बढऩे से रोकता है। जैसे ज्यादा सूजन होने पर पुनर्नवा देते हैं। वहीं दर्द हो तो ग्वारपाठा और संक्रमण होने की स्थिति में गिलोय देते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है।

एलोपैथी
रोग की पहचान कर इलाज होता है। ल्यूकीमिया, रक्त का थक्का न जम पाना या अन्य कारण से यदि तिल्ली बढ़ी है तो स्प्लीनेक्टॉमी कर इसे बाहर निकाल देते हैं। एडवांस स्टेज में बाइपास सर्जरी या दूरबीन से ऑपरेशन करते हैं।

आयुर्वेद
जैसा कि यह बीमारी न होकर विभिन्न रोगों के लक्षण में से एक है, ऐसे में कौनसी औषधि काम में ली जाएगी उसे मरीज की स्थिति और गंभीरता को देखकर देते हैं। औषधि के अलावा विशेषज्ञ रक्तशोधन भी करते हैं। इस प्रक्रिया से तिल्ली को बाहर निकालने से बचाया जा सकता है।

होम्योपैथी
लीवर सिरोसिस के कारण यदि तिल्ली बढ़ी है तो क्योरेकस दवा देते हैं। अलग-अलग लक्षणों के अनुसार दवाएं व उनकी पोटेंसी तय की जाती हैं। इनसे १५ दिन से एक माह के बीच तिल्ली का आकार सामान्य हो जाता है। बाद में लंबे समय तक दवा देकर इम्यूनिटी बरकरार रखते हैं।

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