फौज के लिए पका था लंगर
मान्यता है कि सिखों के दसवें गुरु गोविंदसिंह के नवम्बर 1706 में साहवा साहिब जाते समय उन्होंने सेना सहित यहां पड़ाव डालकर लंगर पकाया था। जिससे इस स्थान का नाम लंगर साहिब रख दिया गया। धार्मिक आस्था के चलते यहां पर एक गुरुद्वारे का निर्माण किया गया। यहां आने वाली संगत की संख्या लगातार बढ़ती रही। जिससे प्राचीन गुरुद्वारे के पास एक नए गुरुद्वारे का निर्माण संगत की कारसेवा से चल रहा था। हालांकि गुरुद्वारे का निर्माण कार्य चलते हुए करीब तीन साल का समय हो गया। लेकिन अब सेवादार इस पर गुम्बद निर्माण कर इसकी फिनिशिंग में लगे हुए थे। (नसं.)
मान्यता है कि सिखों के दसवें गुरु गोविंदसिंह के नवम्बर 1706 में साहवा साहिब जाते समय उन्होंने सेना सहित यहां पड़ाव डालकर लंगर पकाया था। जिससे इस स्थान का नाम लंगर साहिब रख दिया गया। धार्मिक आस्था के चलते यहां पर एक गुरुद्वारे का निर्माण किया गया। यहां आने वाली संगत की संख्या लगातार बढ़ती रही। जिससे प्राचीन गुरुद्वारे के पास एक नए गुरुद्वारे का निर्माण संगत की कारसेवा से चल रहा था। हालांकि गुरुद्वारे का निर्माण कार्य चलते हुए करीब तीन साल का समय हो गया। लेकिन अब सेवादार इस पर गुम्बद निर्माण कर इसकी फिनिशिंग में लगे हुए थे। (नसं.)
माहौल हुआ गमगीन
ढाणी सहारणान के लंगर साहिब गुरुद्वारे में गुरुनानक देव का 550 वां सालाना प्रकाशोत्सव मनाने की तैयारियां चल रही थी। करीब एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के यहां प्रसादे का कार्यक्रम किया जा रहा था। लेकिन प्रकाशोत्सव की इन तैयारियों के बीच हुए हादसे ने सभी को गमगीन कर दिया। (नसं.)
ढाणी सहारणान के लंगर साहिब गुरुद्वारे में गुरुनानक देव का 550 वां सालाना प्रकाशोत्सव मनाने की तैयारियां चल रही थी। करीब एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के यहां प्रसादे का कार्यक्रम किया जा रहा था। लेकिन प्रकाशोत्सव की इन तैयारियों के बीच हुए हादसे ने सभी को गमगीन कर दिया। (नसं.)