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परिवार की बेरुखी : अपनों के होते हुए भी वृद्धाश्रम में दिन गुजार रही 98 साल की राजाबेटी

locationग्वालियरPublished: Dec 21, 2018 06:35:27 pm

Submitted by:

Gaurav Sen

परिवार की बेरुखी : अपनों के होते हुए भी वृद्धाश्रम में दिन गुजार रही 98 साल की राजाबेटी

old woman in old age home in bhind

परिवार की बेरुखी : अपनों के होते हुए भी वृद्धाश्रम में दिन गुजार रही 98 साल की राजाबेटी

भिण्ड। वृद्धाश्रम में सर्द दिसंबर की सुबह कुनकुनी धूप बिखरी हुई है। आश्रम के खुले और बड़े से आंगन में अलग-अलग जगह बैठे तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा वृद्धजन सुहानी धूप का आनंद ले रहे हैं। चार वृद्ध महिलाएं भी इस हुजूम में शामिल हैं। इन्हीं में से एक धवल बालों और झुर्रियों से भरे चेहरे वाली भिण्ड के बड़ोखरी गांव की निवासी 98 साल की राजाबेटी भी हैं। सफेद साड़ी और उसके ऊपर एक हल्का सा मोटा शॉलनुमा कपड़ा लपेटे कुर्सी पर बैठी राजाबेटी मिट्टी की खपरेल के एक टुकड़े पर सोंठ (सूखा अदरक) घिस रही हैं। सर्दियों में उनकी पसलियों में दर्द होने लगता है। सोंठ के घिसे हुए पावडर को लगाने से दर्द में आराम हो जाता है।

आश्रम में कमोबेश हर वृद्धजन के साथ ऐसी ही कोई न कोई शारीरिक ब्याधि लगी हुई है। यद्यपि वहां वृद्धजनों की उपचर्या, भोजन और चिकित्सा आदि की सभी व्यवस्थाएं हैं, पर फिर भी सबके चेहरों पर अपने बेटा-बहुओं से आत्मीय सेवा सुश्रूषा न मिल पाने का दुख चस्पा है। राजा बेटी, ’आपके परिवार मेंं कोई है?’ पूछने पर फफक पड़ती हैं- ’सब हैं, पर कोई नहीं है। अबोध आयु में विवाह हो गया, पति को ठीक से देखा भी नहीं, चल बसे। उनके हिस्से में 15 बीघा जमीन थी, सब उनके भाई भतीजों ने हड़प ली। पूरी उम्र उपेक्षित रखा। चार साल पहले इलाज के नाम पर भिण्ड लाकर जिला अस्पताल में छोड़ गए थे, उसके बाद फिर किसी ने खबर नहीं ली।’ राजाबेटी अपनी गीली हो आई आंखों को धोती के खूंट से पोंछती हैं। फिर कहने लगती हैं, ’हमने जरूर पूर्व जन्म में कोई बड़ा पाप किया होगा जिससे इस जन्म में वैधव्य मिला और वृद्धाश्रम में आश्रय लेना पड़ा। घर में कई शादी-विवाह हो गए पर हमको कोई पूछने नहीं आया। क्या खून के रिश्ते इतने सस्ते होते हैं? अब तो भगवान से रोज कहती हूं, जल्दी अपने पास बुला ले पर वह भी नहीं सुन रहा।’

दर्दभरी है सभी बुजुर्गों के जीवन की कहानी
वृद्धाश्रम में कुल 7 बुजुर्ग पुरुष और 6 महिलाएं रहती हैं, जिनमें से हर एक की जिंदगी में राजाबेटी जैसा ही दर्द छिपा हुआ है। किसी के परिवार हैं तो किसी का कोई नहीं है। 74 साल के रघुवरदयाल और 66 साल के निंदू के परिवार में कोई नहीं है। गरीब परिवार में जन्मे रघुवर दयाल जवान उम्र में शहर में गैस के गुब्बारे बेचते थे। पिछले कुछ साल से घुटनों के दर्द ने उनको असहाय बना दिया है। संगीतज्ञ पिता की संतान निंदू पिता की मौत के बाद किशोर वय से होटल ढाबों में रसोइया का काम करते हुए अब आंखों से लाचार हो चुके हैं। मथुरा की रहने वाली 82 साल की कमलादेवी भी परिजनों द्वारा ठुकरा दिए जाने के बाद भटकती हुईं यहां वृद्धाश्रम में आ गई हैं। आश्रम के प्रबंधक मनीष सिंह कुशवाह कहते हैं, यहां सभी बुजुर्ग एक परिवार की तरह हैं। उनको किसी तरह की तकलीफ न हो इसका पूरा ख्याल रखा जाता है। अब तक ऐसा मौका कभी नहीं आया जब यहां से किसी बुजुर्ग को वापस ले जाने के लिए उनका कोई परिजन आया हो। जो बुजुर्ग शरीर छोड़ देता है, उसका हम सब आश्रम निवासी ही मिलकर अंतिम संस्कार करते हैं।

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