दीक्षार्थी महेशचन्द्र जैन ने भक्ति गीतों के माध्यम से अपने सांसारिक से वैराग्य जीवन में जाने के लिए अनुमति मांगी। इसके बाद दीक्षार्थी ने आराधना करते हुए मंच पर विराजमान विराग सागर एवं मुनि संघ से आज्ञा मांगी और श्रीफल भेंट किया। जैसे ही विराग सागर महाराज ने दीक्षा लेने की अनुमति दी तो पूरा पंडाल तालियों की गडगड़ा़हट से गूंज उठा। इसके बाद विराग सागर महाराज ने दीक्षार्थी महेशचंद्र जैन से पूछा कि सोच लो अभी मौका है। क्षुल्लक पथ पर चलना तलवार की धार पर चलने के समान है। इस पर दीक्षार्थी महेशचन्द्र जैन ने क्षुल्लक बनने की भावना प्रकट की।