न्याय मिलने में देरी होने से उसकी जिंदगी के 5 साल बर्बाद हो गए, बलात्कार का कलंक लगा सो अलग। उच्च न्यायालय ने मामले को झूठा पाते हुए राज्य शासन पर 10 हजार रुपए का हर्जाना लगाया है। न्यायालय ने हर्जाने की राशि पान सिंह को दिए जाने के आदेश दिए है। वहीं पान सिंह को स्वतंत्रता दी है कि वह क्षतिपूर्ति के लिए शासन के खिलाफ दावा प्रस्तुत कर सकता है।
न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने आदेश में कहा कि प्रकरण के साक्ष्यों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण पान सिंह को फंसाने षडयंत्र पूर्वक मामला तैयार किया गया। अभियोजन द्वारा सील्ड पेटिकोट की व अन्य की एफएसएल रिपोर्ट भी प्रस्तुत नहीं की गई। बलात्कार की घटना को सिद्ध करने के लिए स्वतंत्र वैज्ञानिक साक्ष्य होना जरूरी है, लेकिन अभियोजन इसे एकत्र करने में असफल रहा। अभियोजन द्वारा प्रस्तुत गवाह सच्चाई की नींव पर स्थापित नहीं किए जा सकते हैं।
न्यायालय कहा कि जिस प्रकार से गवाहों ने गवाही दी है वह संदिग्ध है। डॉक्टर द्वारा किसी भी चोट की पुष्टि नहीं की गई है। आरोपी पान सिंह द्वारा यह अपील अतिरिक्त सत्र न्यायालय शिवपुरी द्वारा बलात्कार के मामले में ७ दिसंबर ०५ को सुनाई गई 10 साल की सजा के खिलाफ प्रस्तुत की गई।
यह था मामला
प्रकरण के तथ्य इस प्रकार बताए जाते हैं कि 12 जनवरी 05 को दोपहर 12.30 बजे जब पीडि़ता अपने कमरे में थी तभी आरोपी पान सिंह उसके कमरे में घुस गया और उसके साथ बलात्कार किया। आरोपी ने उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया था, इस कारण वह चिल्ला नहीं सकी। घटना स्थल से 20-25 कदम की दूरी पर उसका पति मौजूद था, जब वह पहुंचा तो आरोपी भाग गया, लेकिन घटना की रिपोर्ट 13 घंटे बाद दर्ज कराई गई। इसका कोई कारण नहीं होने से यह संदेह उत्पन्न करती है।
महिला पहले भी कुछ लोगों को फंसा चुकी है
अपीलकर्ता का कहना था कि पंचायत चुनाव के कारण राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते यह झूठा आरोप लगाया गया है। इससे पहले भी यह महिला बदाम, लखन, भासु और रघुवर के खिलाफ बलात्कार के आरोप लगा चुकी है। उन सभी को अदालत ने बरी कर दिया था। वहीं इस मामले में डॉक्टरी रिपोर्ट में उसके शरीर पर किसी भी चोट की पुष्टि नहीं की गई थी।