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कर्मचारियों ने महापौर, सदस्यों को घेरा, पीछे के गेट से निकले कमिश्नर, जानिए क्या है मामला

locationग्वालियरPublished: Feb 16, 2019 01:23:03 am

Submitted by:

Rahul rai

दैवेभो कर्मचारी बनाए जाने की आशंका से कर्मचारी दोपहर तीन बजे से शाम छह बजे तक बाल भवन के गेट को घेरकर हंगामा करते रहे। उन्होंने एमआइसी सदस्यों को बाहर निकलने से रोकने का प्रयास किया, इस पर कुछ सदस्यों से नोंकझोंक भी हुई

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कर्मचारियों ने महापौर, सदस्यों को घेरा, पीछे के गेट से निकले कमिश्नर, जानिए क्या है मामला

ग्वालियर। नगर निगम में स्थायी किए गए 2606 कर्मचारियों को पुन: दैवेभो कर्मचारी बनाए जाने का प्रस्ताव शुक्रवार को बाल भवन में हुई एमआइसी की बैठक में नहीं आया। बैठक में निगमायुक्त ने इस संबंध में चर्चा तो की, लेकिन कुछ सदस्यों द्वारा प्रस्ताव मांगे जाने पर उन्होंने कोई प्रस्ताव नहीं दिया, इससे सदस्यों ने इस पर चर्चा करने से मना कर दिया, इससे फिलहाल यह मामला टल गया है।
उधर पुन: दैवेभो कर्मचारी बनाए जाने की आशंका से कर्मचारी दोपहर तीन बजे से शाम छह बजे तक बाल भवन के गेट को घेरकर हंगामा करते रहे। उन्होंने एमआइसी सदस्यों को बाहर निकलने से रोकने का प्रयास किया, इस पर कुछ सदस्यों से नोंकझोंक भी हुई। विरोध और नारेबाजी के बीच महापौर और एमआइसी सदस्य तो आगे के गेट से निकल गए, लेकिन नगर निगम कमिश्नर पीछे के गेट से निकले। महापौर द्वारा ठोस आश्वासन न मिलने से नाराज कर्मचारियों का कहना है कि सोमवार से वह काम बंद कर सकते हैं।
महापौर बोले- नियमानुसार करेंगे
बाल भवन में शुक्रवार को दोपहर दो बजे से स्थायी किए गए कर्मचारी एकत्रित होना शुरू हो गए थे, तीन बजे तक काफी मजमा लग गया। सीढिय़ों पर बैठकर महिला कर्मियों ने एमआइसी सदस्यों को निकलने से रोकने का प्रयास किया। नारेबाजी देखकर महापौर विवेक शेजवलकर, एमआइसी सदस्य सतीश बोहरे, खुशबू गुप्ता, धर्मेन्द्र राणा आंदोलनकारियों के बीच आए। महापौर ने उनसे कहा कि हमने आप लोगों को स्थायी किया था, नियम अनुसार जो भी काम होगा वह करेंगे। अभी स्थायी कर्मचारियों के निर्णय पर विचार करने प्रस्ताव एमआइसी में नहीं आया है, इसके बाद भी आंदोलनकारी उन्हें स्थायी रखने का आश्वासन देने पर अड़े रहे।
अगस्त से नहीं मिला वेतन, कैसे चलाएं घर
आंदोलन कर रहे कई कर्मचारियों का कहना था कि वे सिक्योरिटी कंपनी के तहत काम करते थे, वह कंपनी काम छोडकऱ चली गई, हम लोगों को अगस्त 2018 से वेतन नहीं मिला है। न ही दो साल से ईपीएफ जमा हुआ है। बिना वेतन कैसे घर का खर्च चला सकते हैं। उनका कहना है कि ठेका कंपनी के काम छोडऩे के बाद नगर निगम के कुछ अधिकारी उनके बिल पास नहीं कर रहे हैं, जिससे उन्हें वेतन नहीं मिल पा रहा है।
ऐसे हुई गड़बड़ी
विनियमितीकरण योजना में होने वाली गड़बड़ी के संबंध में एक निगम अधिकारी का कहना था कि शासन का पत्र आया था कि जिन कर्मचारियों को दस वर्ष सेवा करते हो गए हैं उन्हें विनियमित किया जाए, लेकिन निगम आयुक्त ने उस पत्र से एमआइसी को गुमराह किया और एमआइसी ने 2606 कर्मचारियों का विनियमितीकरण कर दिया, जबकि इसका अनुमोदन शासन से नहीं हुआ था।
कर्मचारियों पर साढ़े 12 करोड़ खर्च
विनियमितीकरण के बाद इन कर्मचारियों पर वेतन आदि पर लगभग साढ़े बारह करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। बगैर अनुमोदन के विनियमित किए जाने के मामले को शासन ने गंभीरता से लिया है, इसे लेकर निगमायुक्त और महापौर पर कार्रवाई हो सकती है।
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