बाल भवन में शुक्रवार को दोपहर दो बजे से स्थायी किए गए कर्मचारी एकत्रित होना शुरू हो गए थे, तीन बजे तक काफी मजमा लग गया। सीढिय़ों पर बैठकर महिला कर्मियों ने एमआइसी सदस्यों को निकलने से रोकने का प्रयास किया। नारेबाजी देखकर महापौर विवेक शेजवलकर, एमआइसी सदस्य सतीश बोहरे, खुशबू गुप्ता, धर्मेन्द्र राणा आंदोलनकारियों के बीच आए। महापौर ने उनसे कहा कि हमने आप लोगों को स्थायी किया था, नियम अनुसार जो भी काम होगा वह करेंगे। अभी स्थायी कर्मचारियों के निर्णय पर विचार करने प्रस्ताव एमआइसी में नहीं आया है, इसके बाद भी आंदोलनकारी उन्हें स्थायी रखने का आश्वासन देने पर अड़े रहे।
आंदोलन कर रहे कई कर्मचारियों का कहना था कि वे सिक्योरिटी कंपनी के तहत काम करते थे, वह कंपनी काम छोडकऱ चली गई, हम लोगों को अगस्त 2018 से वेतन नहीं मिला है। न ही दो साल से ईपीएफ जमा हुआ है। बिना वेतन कैसे घर का खर्च चला सकते हैं। उनका कहना है कि ठेका कंपनी के काम छोडऩे के बाद नगर निगम के कुछ अधिकारी उनके बिल पास नहीं कर रहे हैं, जिससे उन्हें वेतन नहीं मिल पा रहा है।
विनियमितीकरण योजना में होने वाली गड़बड़ी के संबंध में एक निगम अधिकारी का कहना था कि शासन का पत्र आया था कि जिन कर्मचारियों को दस वर्ष सेवा करते हो गए हैं उन्हें विनियमित किया जाए, लेकिन निगम आयुक्त ने उस पत्र से एमआइसी को गुमराह किया और एमआइसी ने 2606 कर्मचारियों का विनियमितीकरण कर दिया, जबकि इसका अनुमोदन शासन से नहीं हुआ था।
विनियमितीकरण के बाद इन कर्मचारियों पर वेतन आदि पर लगभग साढ़े बारह करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। बगैर अनुमोदन के विनियमित किए जाने के मामले को शासन ने गंभीरता से लिया है, इसे लेकर निगमायुक्त और महापौर पर कार्रवाई हो सकती है।