ऐसे पकड़ा गया क्लोरीन का फर्जीवाड़ा
- मृतक व सेवानिवृत्त कर्मचारियों के नाम से जो वेतन निकाला जा रहा था, उस पैसे से क्लोरीन की आपूर्ति करने वाली फर्म को भुगतान किया गया। जब कोषालय में कर्मचारियों के वेतन भुगतान के ट्रांजेक्शन की जांच की गई तो क्लोरीन आपूर्ति करने वाली फर्में भी सामने आ गईं, जिसमें महाराज बाड़ा की किताब दुकान भी शामिल है।
- 2023 में हुए घोटाले की जांच की गई, लेकिन पिछले सालों का रिकॉर्ड खंगाला गया तो जांच में 2011 से यह घोटाला शुरू होने की जानकारी सामने आई। 2011 से लेकर 2023 के बीच की लेनदेन की जांच की जा रही है, जिसमें क्लोरीन खरीद के बड़े भुगतान हैं।
- रिकॉर्ड बना बाधा, क्योंकि 2019 के पहले के बिल नहीं: 2019 से पहले जो भी भुगतान हो रहे थे, उनके बिलों की फाइल बनकर आती थी। कोषालय से फाइल पास होने के बाद बिल का भुगतान हो जाता था, इसके बाद फाइल ऑडिट के लिए चली जाती थी। ऑडिट के बाद रिकॉर्ड को नष्ट कर दिया था।
- एक फाइल पीएचई के पास रहती है, लेकिन पीएचई का जो रिकॉर्ड है, वह नहीं मिल सका है। रिकॉर्ड गुम होने का हवाला दिया जा रहा है।
- 2019 के बाद के भुगतानों के बिल कंप्यूटर में स्कैन हैं। इससे 2019 के बाद का पूरा रिकॉर्ड मौजूद है।
- 2011 से 2018 के बीच का रिकॉर्ड मिलने में मुश्किल हो रही है। इस बीच ही सबसे ज्यादा घोटाला हुआ है।
मुख्यालय से फाइनल रिपोर्ट आनी है
-अरविंद शर्मा, वरिष्ठ कोषालय अधिकारी