रणजीत सिंह की है खास अहमियत
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90 के दौर में जन नायक चौधरी देवीलाल के सबसे बड़े सियासी वारिस माने जाने वाले रणजीत सिंह को 32 साल बाद सत्ता में हिस्सेदारी मिली है। कई चुनाव में हार के बावजूद हथियार नहीं डालने वाले रणजीत सिंह संघर्ष की सबसे बड़ी मिसाल बनकर उभरे हैं।
रणजीत सिंह की 90 के दौर में तूती बोलती थी और चौधरी देवीलाल के अधिकांश समर्थक उनको मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन वक्त के हेरफेर में उनके बड़े भाई ओम प्रकाश चौटाला पिता की सियासत के साथ-साथ सत्ता के भी उत्तराधिकारी बन गए और रणजीत सिंह बहुमत के पसंद होने के बावजूद उत्तराधिकार की रेस में पिछड़ गए।
सियासी मजबूरियों के चलते उन्हें परिवार की पार्टी को छोडऩा पड़ा और अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए उन्हें कांग्रेस और भाजपा की चौखटों पर जाना पड़ा। हर हार के साथ उनके मंसूबे मजबूत होते चले गए और इसीलिए 32 साल बाद वे सत्ता के हिस्सेदार बनने में सफल रहे।
2019 में कांग्रेस पार्टी का टिकट नहीं मिलना उनके लिए भाग्यशाली साबित हुआ और लंबे अंतराल के बाद विधायक बनने के साथ-साथ मंत्री भी बन गए। रणजीत सिंह शासन और प्रशासन के मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। इसीलिए तीन दशक के संघर्ष के बावजूद वे अपना अलग सियासी रसूख बनाए रखने में सफल रहे। मौजूदा सरकार में उन्हें बिजली, गैर परंपरागत ऊर्जा और जेल विभाग मिले हैं।रणजीत सिंह इन तीनों विभागों का कायाकल्प करके अपनी काबिलियत और दमखम का डंका बजाने की हसरत रखते हैं। उनको मिले तीनों ही विभागों में आने वाले समय में बड़े बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।
दुष्यंत के लिए कसौटी तैयार
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परिवार की पार्टी इनेलो से बेदखल किए जाने के बाद मजबूरी में जननायक जनता पार्टी बनाने वाले दुष्यंत चौटाला ने 10 ही महीनों में यह साबित कर दिया कि वे अपने परदादा जननायक चौधरी देवीलाल की तरह जनता की नब्ज पहचानने की क्षमता रखते हैं।देश में सबसे कम समय में सरकार में हिस्सेदारी हासिल करने वाले दुष्यंत चौटाला के लिए कई चुनौतियां कसौटी के रूप में तैयार खड़ी हैं।
यह भी खास सहयोग है कि रणजीत सिंह को 32 साल पहले उस समय सरकार में हिस्सेदारी मिली थी जब उनके साथ मंत्रिमंडल में शामिल उनके पोते दुष्यंत चौटाला का जन्म भी नहीं हुआ था।
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