गुरुग्राम में प्रॉपर्टी के भ्रष्टाचार में यह सबसे बड़ा मामला है, जब एक साथ सात तहसीलदारों, 14 बिल्डर्स समेत 31 लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने के अदालत ने आदेश दिए हैं। अदालत का यह ऐतिहासिक फैसला माना जा रहा है। क्योंकि बिल्डर्स और अफसरों ने जो खुलेआम लूट मचा रखी है, वह किसी से छिपी नहीं है। गरीब आदमी को एक फार्म तक देने में आना-कानी करने वाली बिल्डर्स और फिर शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करने वाले अफसरों को अदालत ने यह निर्णय सुनाकर आइना दिखा दिया है कि उनकी नजरों से और कानून की मार से कोई नहीं बच सकता।
पूरा मामला इस तरह से है कि गुरुग्राम में सर्कल रेट को कम दिखाकर और जमीन को नगर निगम के बाहर करके सैंकड़ों रजिस्ट्री करके करोड़ों रुपए का घोटाला किया गया था। सरकार को करोड़ों रुपए का चुना लगाकर तत्कालीन अधिकारियों ने अपनी जेब भरने के काम किया।
वर्ष 2009 से चल रहा था गोरखधंधा
गुरुग्राम की मानेसर तहसील में 2009 से ये गोरखधंधा चल रहा था, जिसकी शिकायत करने के बाद इस पूरे मामले में जिला स्तर विभागीय जांच की गई थी, लेकिन किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई है। जिसके बाद पूरे मामले के खिलाफ दो साल पहले जिला अदालत में याचिका दायर की गई, जिस पर लगातार सुनवाई चल रही थी। याचिका के आधार पर तथ्यों को कोर्ट के समक्ष रखा गया उसके बाद कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया।
तत्कालीन तहसीलदार पंकज सेतिया, केएस डाका, ललित गुप्ता, रणविजय समेत सात तहसीलदारों, रजिस्ट्री क्लर्क और 3 कम्प्यूटर ऑपरेटर समेत 14 बिल्डर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश कोर्ट ने सुनाया है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस तहसील में अधिकारी आते जाते रहे हैं, लेकिन भ्रष्टाचार का यह सिलसिला जारी रहा।
सरकार की तरफ से सर्कल रेट पर 7 प्रतिशत राशि रजिस्ट्री के समय ली जाती थी, जो राशि सरकार के खाते में जाती थी। लेकिन इस तहसील में कम्प्यूटर में गड़बड़ी करके किसी बिल्डर की जमीन की रजिस्ट्री जिस वक्त की जाती, उस समय कम्प्यूटर में उस जमीन को निगम क्षेत्र से बाहर करके उस रजिस्ट्री को किया जाता था, जिसमें स्टॉप डयूटी 7 प्रतिशत की जगह 5 प्रतिशत हो जाती थी और सीधा 2 प्रतिशत का नुक्सान सरकार को होता। वहीं तहसीलदार और तमाम तहसील के अधिकारी इस 2 प्रतिशत राशि को अपनी जेब में डाल लेते थे, जो सीधे तौर पर घोटाला है।
पांच करोड़ नौ लाख का किया गया गबन
2009 से 2013 तक तहसील के अंदर ये भ्रष्टाचार हुआ, जिसमें करीब 5 करोड़ 9 लाख रुपए की राशि का गबन किया गया और सरकार को चुना लगाया गया। वहीं 2015 तक शिकायत कर्ता ने सभी अधिकारियों समेत सीएम को भी इसकी शिकायत दी थी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिसके बाद कोटज़् का दरवाजा खटखटाया। फिलहाल इस मामले में जिला अदालत में न्यायाधीश नवीन कुमार ने ये फैसला सुनाया है। मानेसर थाना में तुरंत प्रभाव से सभी आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज करने को भी कहा गया है।
हाईकोर्ट की शरण में जाएंगे तहसीलदार
जिन तहसीलदारों के खिलाफ गुरुग्राम की अदालत ने केस दर्ज करने के आदेश जारी किए हैं, उन तहसीलदारों ने अब हाईकोर्ट की शरण लेने की तैयारी कर ली है। इस निर्णय पर नाम न छापने की शर्त पर एक तहसीलदार ने बताया कि वर्ष 2010-11 में हरियाणा में छह हजार रजिस्ट्रियां हुई थी, जिसमें 634 नगर निगम की थी। हरियाणा के मुख्य सचिव ने इस मामले में जांच के आदेश दिए थे। एफसीआर की टीम गठित की गई थी। टीम ने यमुनानगर, कुरुक्षेत्र व अंबाला में जांच की थी। इस टीम में स्पेशल सचिव रेनेन्यू व एनएसजी के चार अधिकारियों को शामिल किया गया था। इस जांच में पाया गया कि सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी हुई थी, जिसके कारण ये रजिस्ट्रियां चढ़ गई थी। शिकायतकर्ता रमेश ने मुख्य सचिव को लिखा था। उसमें एडीसी प्रदीप दहिया ने जांच करके सरकार को रिपोर्ट भेजी। जांच में भी कहा गया कि यह गड़बड़ी सॉफ्टवेयर के कारण ही हुई। बाद में इनमें सुधार की कार्रवाई शुरू कर दी गई। मुख्य सचिव भी इस मामले में क्लीन चिट दे चुके हैं।