इन दोनों के अलावा भी यहां दोनों पार्टियों के अन्य नेता भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं, जिनमें भाजपा के जिला उपाध्यक्ष बल्लू चौहान और कांग्रेस के देवेन्द्र मीना दीतलवाड़ा प्रमुख हैं। क्षेत्र में मीना समाज का बाहुल्य है। करीब ४० प्रतिशत मतदाता मीना समाज के है। दूसरी सबसे बड़ी आबादी भील समाज की है। इसलिए मीना समाज यहां निर्णायक भूमिका में है। हालांकि गैर मीना प्रत्याशी भी यहां से चुनाव जीतते रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय ङ्क्षसह का भी क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव है, लेकिन ३४ हजार ९०१ मतों से चुनाव जीतीं ममता मीना ने विधायक बनने के बाद से ही क्षेत्र में अपनी सक्रियता बनाकर रखी है।
इसलिए इस बार का चुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण है। यहां से कांग्रेस ५ बार और भाजपा दो बार ही जीती है। आदिवासी गांवों में विकास कार्यों की कमी वर्तमान विधायक के लिए परेशानी बन सकती है।
मुद्दे जो चर्चा मेंं हैं
जंगलों की कटाई और जंगल में बड़े हिस्से पर अतिक्रमण।
कंप्यूटर चोरी के बाद से बंद पड़ा रजिस्ट्रार ऑफिस दोबारा शुरू करवाना। अभी लोगों को राघौगढ़ जाना पड़ता है।
पठारों जंगलों में अवैध उत्खनन
विधानसभा में पूर्व सांसद लक्ष्मणङ्क्षसह भी सक्रिय हैं। सघन रूप से दौरे कर रहे हैं, जिससे उनके भी चुनाव में उतरने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा मंडल अध्यक्ष रहे और वर्तमान में जिला उपाध्यक्ष बल्लू चौहान के टिकट मांगने से पार्टी के सामने असमंजस की स्थिति बन सकती है।
चुनौतियां बड़ी पार्टियों की
भाजपा के सामने एंटी इंकमबेंसी, आदिवासी गांवों में भील समाज को साधना बड़ी चुनौती है। वहीं कांग्रेस के सामने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को दोबारा प्राप्त करना और संगठन को मजबूत कर चुनाव में उतरने की चुनौती
रहेगी।