बता दें, कुछ दिन पहले ही यमन में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए देश में फैसला लेने में सक्षम संबंद्ध पक्षों से राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने का आह्वान किया था। गौर हो, यमन इस युद्ध के कारण गंभीर मानवीय संकट से जूझ रहा है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट में UN महासचिव के विशेष दूत इस्माइल ओलद शेख अहमद के हवाले से लिखा है कि यमन के बारे में निर्णय ले सकने वाले सक्षम संबद्ध पक्ष ही इस युद्ध को रोक सकते हैं। उन्होंने कहा था कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण अंतिम मौके पर पार्टियों ने शांति प्रस्ताव पर अपने कदम पीछे खींच लिए। विचार विमर्श की समाप्ति पर यह साफ हो गया कि हौथी (युद्ध में शामिल शिया लड़ाके) प्रस्तावित सुरक्षा व्यवस्थाओं में छूट देने के लिए राजी नहीं हैं। इसलिए बातचीत के जरिए समाधान में करने में यह एक बहुत बड़ी बाधा है। उन्होंने इस बात का विशेष उल्लेखन किया कि संबद्ध पक्षों को लगता है कि यदि वे संघर्ष में किसी तरह की छूट देते हैं, तो इसे उनकी कमजोरी माना जाएगा।
गौर हो, अरब देश यमन में पिछले तीन वर्षों से सरकारी सेनाओं और हूथी विद्रोहियों में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। इस दौरान नौ हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 50 हजार ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। यमन अरब दुनिया के सबसे गरीब देशों में माना जाता है। वहां राजधानी सना समेत देश के ज्यादातर हिस्सों परहूथी विद्रोहियों ने कब्जा कर रखा है। ईरान खुले तौर पर इन्हें समर्थन देता है। वर्चस्व की इस लड़ाई का खामियाजा यमन के आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।