विश्वविद्यालयों में समान पाठ्यक्रम की तैयारियों के लिए मंथन का दौर
Higher education not allot seat for college admission in graduation
यूपी के विश्वविद्यालयों में समान पाठ्यक्रम की तैयारियों के लिए मंथन का दौर जारी है। कई सालों से कुलपतियों की एक कमेटी इस दिशा में काम कर रही। गोरखपुर विवि में कुलपतियों की कमेटी की बैठक में निर्णय लिया गया कि यूपी के सभी विश्वविद्यालयों में न्यूनतम साझा पाठ्यक्रम तैयार इस महीना के अंत में समिति को उपलब्ध करा दें। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी तथा सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु के कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे की अध्यक्षता में गठित इस समिति की बैठक दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में संपन्न हुई। बैठक में आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरविंद दीक्षित, बरेली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अनिल शुक्ला, इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेंद्र प्रसाद, मेजबान डीडीयू के कुलपति प्रो. विजय कृष्ण सिंह तथा लखनऊ, मेरठ और कानपुर विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिगण शामिल हुए। बैठक में समिति के सदस्य सचिव उच्च शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश शासन के अवर सचिव डॉ. आरके चतुर्वेदी, प्रतिकुलपति प्रो. एसके दीक्षित तथा कुलसचिव सुरेश चन्द्र शर्मा भी उपस्थित रहे । गोरखपुर विश्वविद्यालय को समिति ने सबसे ज्यादा 8 विषयों के पाठ्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी गोरखपुर विवि को सौंपी है। संयोजक प्रो. सुरेंद्र दुबे ने समिति के लक्ष्यों और अब तक की प्रगति की समीक्षा करते हुए कहा कि न्यनतम साझा पाठ्यक्रम से उन विद्यार्थियों को विशेष लाभ होगा। जिन्हें पढ़ाई के दौरान अचानक अपना क्षेत्र बदलना पड़ता है। डॉक्टर चतुर्वेदी ने झांसी तथा आगरा में संपन्न पूर्व की बैठकों और उसके उपरांत की प्रगति से सदस्यों को अवगत कराया। इसके पश्चात सभी प्रतिभागी विश्वविद्यालयों ने स्वयं को आवंटित विषयों के पाठ्यक्रम निर्माण की प्रगति की जानकारी दी तथा तैयार हो चुके पाठ्यक्रम के विवरण समिति को सौंपे। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि के प्रतिकुलपति प्रो. एसके दीक्षित ने समिति को सूचित किया कि सभी आवंटित विषयों के पाठ्यक्रम 25 सितंबर तक उपलब्ध करा दिए जाएंगे।
पाठ्यक्रम के बाबत कुलपतियों की समिति के संयोजक प्रो.सुरेंद्र दुबे ने बताया कि इसे एक समान पाठ्यक्रम कहने की बजाय न्यूनतम साझा पाठ्यक्रम कहना उचित होगा। प्रस्तावित पाठ्यक्रम से न्यूनतम 60 प्रतिशत सामग्री सभी जगह रहे, ऐसी अपेक्षा है। शेष 40 प्रतिशत सामग्री विवि अपनी क्षेत्रीय विशिष्टताओं और विशेषज्ञता के आधार पर लागू कर सकें ऐसा हमारा विचार है।