scriptकभी यहां एकतरफा जीत हासिल होती थी, अब वोट के लिए करना पड़ता है संघर्ष इस पार्टी को | UP Congress fight to save itself in purvanchal in loksabha polls 2019 | Patrika News

कभी यहां एकतरफा जीत हासिल होती थी, अब वोट के लिए करना पड़ता है संघर्ष इस पार्टी को

locationगोरखपुरPublished: Sep 19, 2018 02:49:01 pm

यूपी के इस अंचल में ‘अच्छे दिन’ की तलाश

Rahul modi

Rahul modi

मिशन 2019 की तैयारियां जोरों पर है। बीजेपी अपने दांव चल रही तो महागठबंधन को लेकर संजीदा समाजवादी पार्टी हर सूरत में बीजेपी को रोकने के लिए प्रयासरत है। इन सबके बीच कांग्रेस भी है जो यूपी में अपने अस्तित्व को लेकर परेशान है। कांग्रेस अपने अच्छे दिनों की तलाश में इस मसले पर मंथन करने में लगी है कि वह अकेले चुनाव मैदान में उतरे या महागठबंधन में शामिल होकर कुछेक सीटों पर पूरे दमखम से जीतने की कोशिश में लगे।
इस अंचल में कांग्रेस का कभी रहा है दबदबा

गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ लोकसभा सीटों पर कांग्रेस आजादी के बाद से ही काफी मजबूत स्थिति में रही है। अगड़ी जातियों का साथ और दलित-मुसलमान का बेस इस पार्टी को हमेशा यहां जिताता रहा। लेकिन सोशलिस्ट आंदोलन, बसपा की मजबूती के साथ ही कांग्रेस का वोट बैंक खिसकने लगा। हालात ये हुए कि जो कांग्रेस कभी नौ की नौ सीटों पर मजबूती से लड़ती थी और अधिकतर सीटों पर उसके प्रत्याशी जीतते थे, अब एक-एक सीट के लिए तरसने के साथ कई सीटों पर सम्मानजनक सीटों के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि अगड़ी जातियों के साथ दलित और मुसलमान उसका वोट बैंक रहा है लेकिन बसपा की मजबूती के साथ ही दलित वोट बैंक कांग्रेस से छिटक गया। वीपी के जनता लहर में मुसलमान तो कांग्रेस को यूपी में छोड़ ही चुका था लेकिन राममंदिर आंदोलन के बाद तो मुसलमान सिर्फ इस ओर ध्यान देने लगा कि बीजेपी के खिलाफ जो मजबूत होगा उसे वोट करेंगे। इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ। आगामी लोकसभा चुनाव में अभी तक कांग्रेस महागठबंधन में शामिल नहीं हैं। उहापोह की स्थिति बनी हुई है।
नब्बे के दशक के बाद कांग्रेस का पूर्वांचल में शुरू हुआ दुर्दिन

1951

गोरखपुर-बस्ती मंडल की दस सीटों पर नौ सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। केवल देवरिया पूर्वी लोकसभा क्षेत्र में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रामजी को विजय हासिल हुई थी। पहले चुनाव में वोटिंग का आलम यह था कि कई सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार कुल पड़े मतों का पचास से लेकर 75 प्रतिशत वोट तक हासिल किए थे।

1957

दूसरे लोकसभा चुनाव में लोकसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन हुआ। इस बार कुल नौ लोकसभा क्षेत्र गोरखपुर-बस्ती मंडल में बनाए गए थे। इन नौ सीटों में कांग्रेस ने छह सीटों पर जीत हासिल की। दो सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीते थे तो एक सीट प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से रामजी वर्मा के खाते में गई। हालांकि, इस बार भी लोगों का रूझान कांग्रेस की ओर ही था। अधिकतर सीटों पर कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की थी।
1962

देश में हुए तीसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर एकतरफा जीत हासिल की। गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ लोकसभा सीटों में सभी नौ सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी विजय हासिल किए। मतों का प्रतिशत भी कांग्रेस ने बरकरार रखा। समाजवादियों को इस बार जबर्दस्त झटका लगा था।
1967

चौथा लोकसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस थोड़ी कमजोर पड़ती दिखी या यूं कहें कि विपक्ष ने पांव जमाना शुरू कर दिया था। दोनों मंडलों की नौ लोकसभा सीटों में तीन सीटें कांग्रेस से विपक्ष ने छीन लिया था। भारतीय जनसंघ ने डुमरियागंज और खलीलाबाद सीट को पहली बार जीत लिया था। जबकि बांसगांव सुरक्षित सीट पर सोशलिस्टों का कब्जा हो गया। छह सीटों पर कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल कर ली थी।
1971

सन् 71 के चुनाव में भी कांग्रेस ने अपना जलवा बरकरार रखा था। नौ सीटों में आठ सीटें इस बार जनता ने कांग्रेस की झोली में डाल दिया था। केवल महराजगंज की सीट सिब्बन लाल सक्सेना ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीती थी।

1977

इमरजेंसी के बाद हुआ यह पहला चुनाव था। कांग्रेस के प्रति लोगों का गुस्सा साफ तौर पर बैलेट पर उतरा। पूर्वांचल के गोरखपुर-बस्ती मंडल से इस पार्टी का सुपड़ा साफ हो गया। यहां की जनता ने कांग्रेस को एकदम से नकार दिया। यहां की नौ में से सभी नौ सीटों पर भारतीय लोकदल के प्रत्याशियों ने जीत हासिल कर ली थी। कांग्रेस एक सीट तक जीतने के लिए तरस गई।
1980

लेकिन कुछ ही सालों बाद जनता ने इमरजेंसी लगाने वाली इंदिरा गांधी की कांग्रेस को माफ कर दिया। जनता पार्टी बिखर चुकी थी। चुनाव हुए तो गोरखपुर-बस्ती मंडल की सभी नौ सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो चुका था। कांग्रेस के सभी उम्मीदवार यहां से जीत कर लोकसभा पहुंच चुके थे।
1984

इस लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष का कोई दांव नहीं चल सका। सभी नौ सीटों पर कांग्रेसी प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। सभी सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों ने एकतरफा जीत हासिल की। वोटों का अंतर काफी अधिक रहा।
1989

लेकिन 1989 में हुए चुनाव में कांग्रेस को झटका लगना शुरू हुआ। कांग्रेस से बगावत कर राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह मैदान में आ चुके थे। बोफोर्स मुद्दे पर वह कांग्रेस की लुटिया डुबोने लगे थे। वीपी के जनता दल की अगुवाई में नेशनल फ्रंट बन चुका था जिसमें समाजवादी, वामपंथी के अलावा भाजपा भी साथ थी। इस बार वीपी सिंह के जनता दल के प्रत्याशियों ने एकतरफा जीत हासिल की। कुल नौ सीटों में सात सीटों पर जनता दल के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। गोरखपुर संसदीय सीट पर हिंदू महासभा के महंत अवेद्यनाथ ने जीत हासिल की। जबकि बांसगांव सुरक्षित से कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद को लोगों ने जीताया।

1991

लेकिन दो साल में ही वीपी सिंह की चमक को राममंदिर आंदोलन ने कम कर दिया। पूरे देश में आडवाणी के राममंदिर आंदोलन की धूम थी। रामलहर ने बीजेपी को पूर्वांचल में एकतरफा जीत दिलाया। बीजेपी गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ में सात सीटें जीत गई। जनता दल को सिर्फ दो सीटें ही हासिल हुई। कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब हो गई।

1996

इस लोकसभा चुनाव में गोरखपुर-बस्ती मंडल से कांग्रेस का सुपड़ा एकदम से साफ होने लगा। आलम यह कि सभी नौ लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी चैथे से पांचवे स्थान पर रहे। डेढ़ से पांच प्रतिशत वोट इन लोगों ने पाया। जमानत जब्त हुए। सलमेपुर के कांग्रेस प्रत्याशी कामेश्वर उपाध्याय को 57 हजार से कुछ अधिक वोट मिले तो पडरौना से कांग्रेस के प्रत्याशी आरपीएन सिंह को 39 हजार से कुछ सौ अधिक वोट मिले। जमानत किसी भी कांग्रेस प्रत्याशी का नहीं बच सका था। अधिकतर प्रत्याशी सात-आठ हजार वोटों तक सिमट गए।

1998

बारहवां लोकसभा चुनाव आते आते कांग्रेस का वोट बैंक लगभग खिसक चुका था। बीजेपी सात सीटें इस बार हासिल की तो दो सीट समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के खाते में गई। इस बार कांग्रेस प्रत्याशियों ने थोड़ी मेहनत की और उसके अधिकतर प्रत्याशी पंद्रह से बीस हजार वोट पाए। हालांकि, इस बार भी जमानत किसी की नहीं बच सकी।
1999


तेरहवां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने काफी सोच समझकर प्रत्याशियों को मैदान में उतारा। हालांकि, एक भी सीट पर जीत तो कांग्रेस हासिल न कर सकी लेकिन उसके प्रत्याशियों में कईयों ने लाख-डेढ़ लाख वोटों का आंकड़ा छुआ। केवल गोरखपुर और महराजगंज के प्रत्याशियों ने कोई खास चमत्कार नहीं किया। इस बार दोनों मंडलों में छह पर बीजेपी, दो पर समाजवादी पार्टी और एक सीट बसपा ने जीती।
2004

चौदहवें लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस को थोड़ा खुश होने का मौका दिया। काफी दिनों के इंतजार के बाद एक जीत हासिल हुई। बांसगांव सुरक्षित सीट से कांग्रेसी प्रत्याशी महावीर प्रसाद जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। इस बार बीजेपी के लिए भी अच्छी खबर नहीं थी। बीजेपी छह सीटों में दो सीटों पर सिमट गई। बसपा को तीन सीट मिले तो सपा को दो। एक सीट नेलोपा को हासिल हुई।
2009

पंद्रहवां लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए दशक का सबसे बेहतरीन चुनाव था। इस बार नौ में तीन सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली थी। कांग्रेस के डुमरियागंज प्रत्याशी जगदंबिका पाल, कुशीनगर से आरपीएन सिंह और महराजगंज के हर्षवर्धन ने जीत हासिल की। बसपा को चार सीटें मिली तो भाजपा केवल गोरखपुर-बांसगांव की दोनों सीटें जीतने में कामयाब रही।
2014

पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी ने सभी नौ सीटों पर जीत हासिल कर ली। इस बार कांग्रेस ने तीन सीटों पर वोट बटोरे लेकिन अन्य सीटों पर एक से दो प्रतिशत वोट पर फिर सिमट गई।

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