11 सदस्यों वाले इस परिवार में घर के नाम पर कई कमरे तो हैं लेकिन राप्ती के पानी का राज उसमें है
बाढ़
गोरखपुर. 1998 में गोरखपुर की बाढ़ की त्रासदी देख चुके लोग नदियों के उफनाने से बेचैन हैं। लहसड़ी गांव के मधुबन यादव और उनका पूरा परिवार अपने घर को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा। घर से दो-तीन मीटर पास आ चुकी राप्ती नदी विकराल हो चुकी है। 11 सदस्यों वाले इस परिवार में घर के नाम पर कई कमरे तो हैं लेकिन राप्ती के पानी का राज उसमें है। पूरे घर में पानी रिसते हुए पहुंच चुका है और यह सिलसिला जारी है। दो कमरे तो दलदल हो चुके हैं उसमें कोई नहीं जा रहा।
IMAGE CREDIT: Patrika किसी तरह यह परिवार गुजर बसर कर रहा। मधुबन बताते हैं कि 1998 की बाढ़ में एक घर नदी के विलीन हो चुका है। इस घर पर भी खतरा मंडरा रहा। अधिकारियों से काफी दिन से हम गांव वाले कहते आ रहे लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया, आज से कुछ काम हो रहा जो नाकाफी है। वह अपने दरवाजे की मिट्टी खोद कर राप्ती को रोकने की कोशिश कर रहे। घर के लोग जी जान से जुटे हुए हैं।
IMAGE CREDIT: Patrika शहर को एक तरफ से सुरक्षित रखने वाले मलौनी बंधे के रिंग बांध में बसे गांव लहसडी के लोगों की कहानी मधुबन यादव की तरह ही है। इनकी दहशत भी पानी के दबाव के साथ बढ़ती ही जा रही। इसी गांव के रहने वाले रिटायर्ड कर्मचारी ओमप्रकाश पांडेय अपना घर छोड़ पड़ोस के एक घर की छत पर अपनी गृहस्थी बसाए हैं। घर की जिम्मेदारियों की वजह से यह अन्य लोगों की तरह किसी सुरक्षित जगह मकान नहीं बनवा सके हैं। फ़िलहाल पड़ोसी के मकान की छत इनकी रसोई और आशियाना है। पत्नी तो बंधे पर ही चारपाई लगा की हैं। घर के पुरूष सदस्य इधर-उधर रतजगा करने को मजबूर हैं।
राप्ती के मुहाने पर बसे इस गांव में अधिकारी एक दो दिन से आ जा रहे।।आश्वासन भी दे रहे लेकिन गांव वालों का मानना है कि अगर काम पहले हुआ रहता तो घरों के पानी नहीं रिसता। राप्ती लगातार उफान पर है। जियो बैग डाल थामने की कोशिश जारी है। रिसाव का पानी बनाई गई नालियों के जरिए गांव के पोखरे को निरंतर भरता जा रहा है। गांव में आज़ादनगर पुलिस चौकी के तीन-चार सिपाही भी तैनात हैं। पुलिस वाले भी बाढ़ के पानी से दहशत में हैं। ये लोग बताते हैं कि काम न होने से गांव में काफी आक्रोश है।
IMAGE CREDIT: Patrika इसी गांव के युवा दीपक मिश्रा अपनी पत्नी के साथ पुश्तैनी घर में दिनरात राप्ती के कोप को झेल रहे। इनकी घर की बाहरी दीवारें सो राप्ती की उफनाई धारा लगातार टकराने को आतुर है। घर का अधिकांश हिस्सा पानी से भर गया है। दीपक व माधुरी सामानों को सुरक्षित करने में लगे हैं। बच्चों को दोनों ने मामा के घर भेज दिया है। पत्रिका संवाददाता जब इनके घर पहुंचा तो माधुरी अल्बम में कैद अपनी पुरानी यादों को समेटने में व्यस्त थी। इनके मकान के बगल में रहने वाले इनके चाचा का पूरा परिवार घर छोड़ कर पलायन कर चुका है। दीपक अपनी छत पर लेकर आते हैं। छत से राप्ती के विकराल रूप को देखा जा सकता है। नदी में उफान इतना कि बड़े बड़े पेड़ इस वक़्त पानी में डूबने की वजह से केवल उनकी डाल ही नजर आ रही। बड़े बड़े टावर नदी के उफान के चलते ठीगने दिख रहे। दीपक बताते हैं नदी की तेज आवाज रात में दहशत पैदा करती है। कब कहाँ किसको निगल जाए ये सोच नींद नहीं आती। लेकिन घर ऐसे छोड़ जा भी तो नहीं सकते।
गांव के बाहर निकलते ही बंधे के पास ही बसे जितेंद्र व रामवृक्ष अपने ढेर सारे साथियों के साथ बंधे का रिसाव रोकने के लगे हैं। पूछने पर पता चलता है कि यह कोई सरकारी काम नहीं बल्कि गांव के लोग ही अपनी सुरक्षा में काम कर रहे। इन्होंने बताया कि कई जगह बंधे में रिसाव हो रहा। अगर रोका नहीं गया तो दूसरी तरफ पूरा गांव व खेत पानी में समा जाएगा। इसलिये बिना किसी का इंतजार किये वह लोग खुद ही इसमें लगे हैं।
बहरहाल, 1998 में राप्ती की त्रासदी का सर्वाधिक दंश झेलने वाले मलौनी बांध पर स्थित लहसड़ी गांव को राप्ती एक बार फिर अपने कोप का शिकार बनाने को आतुर दिख रही। लेकिन ग्रामीण भी बेहद सीमित संसाधन से उफनाई नदी की जिद्द को थामने में लगे हैं। करीब 150 घरों वाले इस गांव में 1000 से अधिक वाशिंदे अपनी मेहनत में सफल होंगे या नहीं यह तो वक़्त बताएगा लेकिन यह तस्वीर हमारे सरकारी तंत्र के काम कराने के दावे की पोल खोलते हैं।